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________________ २९० खजाँचीने तत्काल ही आज्ञाका पालन किया और पाण्डुके पास मुकुट तैयार करवानेका संदेशा भेज दिया। ___ मुकुट तैयार हो गया । पाण्डु उसे लेकर और उसके साथ बहुतसे जवाहरात तथा सोने चाँदी आदिके आभूषण लेकर उक्त राजधानीकी ओर चला । उसने अपनी रक्षाके लिए २०-२५ सिपाही भी साथ ले लिये । सिपाही खूब मजबूत और बहादुर थे। इसलिए उसे आशा थी कि मैं निर्विघ्नतासे अभीष्ट स्थानपर पहुँच जाऊँगा । जिस समय पाण्डु अपने रसालेके सहित एक जंगलको पार कर रहा था, उसी समय पासके दो पर्वतोंके बीचमेसे ५०-६० आदमियोंकी एक अस्त्रशस्त्रोंसे सजी हुई टोली आई और उसने इसपर एक साथ आक्रमण किया । सिपाही बहुत बहादुरीके साथ लडे परन्तु अन्तमें उन्हें हारना पड़ा और डकैत सारा माल लेकर चम्पत हो गये! इल लूटसे पाण्डुका कारोबार मिट्टीमें मिल गया । उसे आशा थी कि मुकुटके साथ मेरा और भी बहुत सामान उक्त राजधानीमें कट जायगा, इसलिए उसने अपना सर्वस्व लगाकर दूसरी तरह-तरहकी र्चाजें तैयार कराई थीं। परन्तु वे सब हाथसे चली गई और वह बिलकुल कंगाल हो गया। ___ पाण्डुके हृदयपर इसकी बड़ी चोट लगी; परन्तु वह चुपचाप यह सोचकर सब दुःख सहने लगा कि यह सब मेरे पूर्वकृत पापोंका फल है। मैंने अपनी जवानीके दिनोंमें क्या लोगोंको कुछ कम सताया था ! अब यह समझना मेरे लिए कुछ काठन नहीं कि जो बीज बोये थे उन्हींके ये फल हैं । अब पाण्डुके हृदयमें दयाका सोता बहने लगा । वह समझने लगा कि दुःख कैसे होते हैं और इससे उसकी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522794
Book TitleJain Hiteshi 1913 Ank 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1913
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size14 MB
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