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________________ १९१ यह हमें याद रखना चाहिए कि जबतक हमारा नये उत्थानका संदेशा लोगोंके कानोंतक इस जोरसे न पहुँचेगा कि उनकी झिल्लियाँ फटने लगें और वे सुनते सुनते ऊब जावें, तबतक उनमें विचारसहिष्णुता नहीं आ सकती-उन्हें सुननेका अभ्यास नहीं हो सकता और तब तक कोई भी नये सुधारके होनेकी आशा नहीं की जा सकती। इस ख़यालसे कि जब ये समझने लगेंगे तब हम कुछ सुनावेंगे हमें सैकड़ों वर्ष तक भी सुनानेका अवसर नहीं मिलेगा। सफलता की कुंजी यही है कि हम उद्योग करते रहें-कर्तव्य करते रहें और विघ्नबाधाओंकी और भ्रूक्षेप भी न करें। ३ जैन हाईस्कूल क्यों न खुला? पाठकोंको मालूम है कि जयपुरनिवासी पं० अर्जुनलालजी सेठी बी. ए को हाईस्कूलकी प्रबन्धकारिणी कमेटीने इस लिए चुनकर इन्दौर बुला लिया था कि वे जैन हाईस्कूलके प्रिंसिपाल बनकर कार्य करें। सेठीजी लगभग १० बर्षसे शिक्षाप्रचार सम्बन्धी कार्य कर रहे हैं। शिक्षापद्धति और शिक्षासंस्थाओंके विषयमें उन्होंने बहुत उच्च श्रेणीका ज्ञान और अनुभव प्राप्त किया है। इस विषयमें से जैन समाजमें अद्वितीय हैं । धार्मिक ज्ञान भी उनका बहुत बढ़ा चढ़ा है । इन बातोंपर ध्यान देनेसे कहना पड़ता है कि प्रबन्धकारिणी कमेटीने उनके चुननेमें बहुत बड़ी योग्यताका परिचय दिया था और सेठीजीके द्वारा उसका हाईस्कूल भारतवर्षका एक आदर्श हाईस्कूल बन जाता, इसमें जरा भी सन्देह नहीं है । परन्तु ' यच्चेतसापि न कृतं तदिहाभ्युपैति ' जो कभी सोचा भी नहीं था वह हो गया; हमारे दुर्भाग्यसे सेठीजीपर एक भयंकर विपत्ति आकर टूट पड़ी जिससे उत्सवके समय हाईस्कूल खुल न सका और यदि हमारा अनुमान सत्य हो तो जैन हाईस्कूल सदाके लिए एक उत्साही स्वार्थत्यागी संचालकसे वंचित हो गया। जहाँ तक हम जानते हैं सेठीजी आज तक कभी किसी राजनैतिक आन्दोलनमें शामिल नहीं हुए है। वे शान्तिप्रिय और राजभक्त जैनजातिके केवल एक धार्मिक और सामाजिक शिक्षक थे। उन्होंने शिक्षाप्रचारका जो बड़ा भारी भार उठा रक्खा था उसको छोड़कर और किसी काममें हाथ डालनेके लिए उनके पास समय भी न था । परन्तु आज कल देशकी दशा ही कुछ ऐसी हो रही है कि राजनीतक मामलोंसे दूर रहनाले लोग भी सुखकी नींद नहीं सोने पाते । यह सुनकर 'सारा जनसमा उ ठा कि ता० ८ मार्चको सेठीजी और उनके 'शिष्य कृष्णजीको पुतिन गरिफ्तार कर ले गई। बीचमें जब यह सुना कि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522793
Book TitleJain Hiteshi 1913 Ank 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1913
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size8 MB
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