SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सनातन जैनग्रंथमाला। इस ग्रंथमालामें सब ग्रंथ संस्कृत, प्राकृत, व संस्कृत टीकासहित ही छपते हैं। यह ग्रंथमाला प्राचीन जैनग्रंथोंका जीर्णोद्धार करके सर्वसाधारण विद्वानोंमें जैनधर्मका प्रभाव प्रगट करनेकी इच्छासे प्रगट की जाती है। इसमें सब विषयों के ग्रंथ छपेंगे। प्रथम अंकमें सटीक आप्तपरीक्षा और पत्रपरीक्षा छपी है। दूसरे अंकमें समयसारनाटक दो संस्कृत टीकाओंसहित छपा है । तीसरे अंकमें अकलङ्कदेवका राजवार्तिक छपा है। चौथे अंकमें देवागमन्याय वसुनंदिटीका और अष्टशतीटीकासहित और पुरुषार्थसिद्धयुपायसटीक छपेगा। इसके प्रत्येक अंकमें सुपररायल ८ पेजी १० फारम ८० पृष्ट रहेंगे। समयसारजी ४ अंकोंमें पूरा होगा। इनके पश्चात् राजवार्तिकजी व पद्मपुराणजी वगैरह बड़े २ ग्रंथ .. छपेंगे। १२ अंककी न्योछावर ८) रु. है। डांक खर्च जुदा है। प्रत्येक अंक डांकखर्चके वी. पी. से भेजा जायगा। यह ग्रंथमाला जिनधर्मका जीर्णोद्धार करनेका कारण है। इसका ग्राहक प्रत्येक जैनीभाई व मंदिरजीके सरस्वतीभंडारको बनकर सब ग्रंथ संग्रह करके संरक्षित करना चाहिये और धर्मात्मा दानवीरोंको इकडे ग्रंथ मंगाकर अन्यमती विद्वानोंको तथा पुस्तकालयोंको वितरण करना चाहिये। चुन्नीलालजैनग्रंथमाला। इस ग्रंथमालामें हिन्दी, बंगला, मराठी और गुजराती भाषामें सब तरहके छोटे छोटे ग्रंथ छपते हैं। जो महाशय एक रुपिया डिपाजिटमें रखकर' अपना नाम स्थायी ग्राहकोंमें लिखा लेंगे, उनके पास इस ग्रन्थमालाके सब ग्रंथ पौनी न्योछावरमें भेजे जायगे और जो महाशय इस संस्थाके सहायक हैं उनको एक एक प्रति विना मूल्य भेजी जायगी। मिलनेका पता-पन्नालाल बाकलीवाल, मंत्री-भारतीय जैनसिद्धान्तप्रकाशिनी संस्था, ठि. मेदागिनी जैनमंदिर बनारस सिटी । Jain Education International, For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522792
Book TitleJain Hiteshi 1913 Ank 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1913
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy