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________________ लीजिये • न्योछावर घटा दी गई। जिनशतक-समंतभद्रस्वामीकृत मूल, संस्कृतटीका और भाषाटीकासहितः न्यो० ॥) धर्मरत्नोद्योत-चौपाई बंध पृष्ठ १८२ न्यो० १) धर्मप्रश्नोत्तर (प्रश्नोत्तरश्रावकाचार ) वचनिका न्यो० २) ये तीनों ग्रंथ ३॥) रुपयोंके हैं, पोष्टेज खर्च ।) आने । कुल ३॥=) होते हैं सो तीनों ग्रंथ एक साथ मंगानेवालोंको मय पोस्टेजके ३) रुपयोंमें भेज देंगे और जिनशतक छोड़कर दो ग्रंथ मंगानेवालोंको २।।) में भेज दिये जायगे । यह नियम सर्वसाधारण भाइयोंके लिये है। एजेंट वा रईसोंके लिये नहीं हैं। मूल संस्कृत और सरल हिंदी वचनिका सहित श्री आदिपुराणजी ।। इस महान् ग्रंथके श्लोक अनुमान १३००० के हैं और इसकी पुरानी वचनिका २५००० श्लोकोंमें बनी हुई है। पहिले इसीके छपानेका विचार था परंतु मूल श्लोकोंसे मिलानेपर मालूम हुआ कि यह अनुवाद पूरा नहीं हैं। भाषा भी ढूंढाड़ी है, सब देशके भाई नहीं समझते। इस कारण हमने अत्यन्त सरल, सुंदर अति उपयोगी नवीन वचनिका बनवाकर मोटे कागजोंपर शुद्धतासे छपाना शुरू किया है। वचनिकाके ऊपर संस्कृत श्लोक छपनेसे सोने में सुगंध हो गई है। आप देखेंगे तो खुश हो जायगे । इसके अनुमान ५०,००० श्लोक और २००० पृष्ठ होंगे। सबकी न्योछावर १४) रु. हैं। परंतु सब कोई एक साथ १४) रु.. नहीं दे सकते, इस कारण पहिले ५) रु० लेकर ७०० पृष्ठ तक ज्यों ज्यों छपेगा हर दूसरे महीने पोस्टेज खर्चके वी. पी. से भेजते जांयगे। ७०० पृष्ठ पहुंच जानेपर फिर ५) रु. मंगावेंगे और ७०० पृष्ठ भेजेंगे। तीसरी बार रु०४) लेकर ग्रंथ पूरा कर दिया जायगा। फिलहाल ३०० पृष्ट तैयार हैं। ५/-) में मय गत्तोंके वी. पी. से भेजा जाता है। चौथा अंक भी छप रहा है। यह ग्रंथ ऐसा उपयोगी है कि सबके घर में स्वाध्यायार्थ विराजमान रहे। यदि ऐसा न हो तो प्रत्येक मंदिरजी व चैत्यालयमें तो अवश्य ही एक एक प्रति मंगाकर रखना चाहिये। पत्र भेजनेका पता-लालाराम जैन, प्रबंधक स्याद्वादरत्नाकर कार्यालय, कोल्हापुर सिटी । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522792
Book TitleJain Hiteshi 1913 Ank 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1913
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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