________________
साधारणतया जैनियोंके घरोंमें किये जाते हैं जिस भाषाका प्रयोग किया जाता है वह संस्कृत ही है। ___४-जैनग्रंथकारोंने अपना ध्यान केवल धर्म-विषयमें ही नहीं किन्तु सर्व-रोचक विषयोंपर भी लगाया है, संस्कृतमें ऐसे, अगणित अन्यान्य ग्रंथ हैं जो कि अटूट परिश्रम करनेवाले जैनियोंने रचे हैं। शाकटायन व्याकरण, जो संस्कृत व्याकरणका एक ग्रंथ है, एक जैन ग्रंथकर्ता शाकटायनका रचा हुआ कहा जाता है । " लङः शाकटायनस्यैव," "व्योर्लघु प्रयत्नतरः शाकटायनस्य, ” पाणिनिके सूत्र हैं जो इस बातको स्पष्टतया सिद्ध करते हैं कि शाकटायनकी स्थिति पाणिनिके पूर्व थी। शाकटायन-व्याकरणके टीका-कर्ता यक्षवर्माचार्यने ग्रंथकी प्रस्तावनाके श्लोकोंमें यह स्पष्टतया प्रगट किया है कि शाकटायन जैन थे और वे श्लोक ये हैं:
स्वस्ति श्रीसकलज्ञानसाम्राज्यपदमाप्तवान् । महाश्रमणसङ्घाधिपतिर्यः शाकटायनः ॥१॥ एकः शब्दाम्बुधिं बुद्धिमन्दरेण प्रमथ्य यः। स यशःश्रियं समुदभ्रे विश्वं व्याकरणामृतम् ॥२॥ स्वल्पग्रंथं सुखोपायं संपूर्ण यदुपक्रमम् । शब्दानुशासनं सार्वमर्हच्छासनवत्परम् ॥३॥
तस्यातिमहतीं वृत्तिं संहृत्येयं लघीयसी।
संपूर्णलक्षणा वृत्तिर्वक्ष्यते यक्षवर्मणा ॥५॥ इनका अर्थ यह है कि “ सकलज्ञान-साम्राज्यपदभागी श्रीशाकटायनने,-जो कि जैन समुदायके स्वामी थे-अपने ज्ञानरूपी मंद्राचलसे (संस्कृत) शब्दरूपी सागरको मथ डाला और व्याकरणरूपी अमृ
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org