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________________ वह वक्त जा रहा है । मैं आज इन्दौर में बैठा हुआ अनुभव कर रहा हूँ कि रुपया लगानेवाले तो तैयार हो गये; परन्तु हाईस्कूलों और कालेजकी चिल्लाहटसे कानकी झिल्लियाँ फाड़नेवालोंका कहीं पता नहीं है । यहाँ क्यों मैं तो प्रत्येक संस्थामें यही हाल देखता हूँ। जैनियोंकी प्रायः सब ही संस्थाओंकी दुर्दशा है और इसका एक मात्र कारण यह है कि हमारे यहाँ सुयोग्य काम करनेवाले नहीं मिलते । एक संस्था खुलती है, कुछ दिनोंके लिए अपनी टीमटाम दिखा जाती है और अन्तमें वे ही 'ढाकके तीन पात' रह जाते हैं-अच्छे शिक्षित कार्यकर्ताओंके अभावसे वह अपना पैर नहीं बढ़ा सकती। प्यारे शिक्षित भाइयो, अब यह समय आलस्यमें या केवल स्वार्थकी कीचडमें पड़े रहनेका नहीं है । इस समय यदि आप कार्यक्षेत्रमें न आयेंगे तो बस समझ लीजिए कि जैनसमाजकी उन्नति हो चुकी । इन नवीन संस्थाओंको अपने अपने कन्धोंपर नहीं रक्खा तो बस आगे इनका खुलना ही बन्द हो जायगा और यदि अपने अपने कर्तव्यका पालन किया तो अभी क्या हुआ इस धनिक जैनजातिमें प्रतिवर्ष ही ऐसी लाख दो लाख चार चार लाखकी अनेक संस्था ओंका जन्म होगा। और आपको काम करते देखकर आपके पीछे सैकडों कर्मवीर इन संस्थाओंके चलानेके लिए तैयार होते रहेंगे। इस समय तो काम करनेवाले कहीं दिखते ही नहीं हैं। मालूम नहीं आज वे स्टेजपर खड़े होकर बड़े बड़े लेक्चर झाड़नेवाले कहाँ हैं ? भाइयो, लेक्चरोंका काम अब नहीं रहा, वह तो हो चुका । अब तो कामका वक्त आया है। दयानन्द कालेज, पूना कालेज, हिन्दू कालेज, गुरुकुल आदि संस्थाओंको देखकर सीखो कि देश और समाजकी सिवा कैसे की जाती है और फिर अपनी अपनी परिस्थिति के अनुसार Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522792
Book TitleJain Hiteshi 1913 Ank 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1913
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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