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________________ भी देना स्वीकार की है। जहां तक हमारा खयाल है वर्तमान समयमें विद्योन्नतिके लिए दिगम्बर जैनसमाजमें यह सबसे बड़ा दान हुआ है। इससे बड़ी रकम इस कार्यके लिए यही सबसे पहली निकली है। इसमें सन्देह नहीं कि यह उदारता प्रगट करके सेठजीने अपना नाम युग युगके लिए अमर कर लिया है । यह जानकर और भी प्रसन्नता हुई कि सेठजी सम्पूर्ण शिक्षित जनोंकी सम्मति लेकर इस रकमसे एक सर्वोपयोगी सर्वजनसम्मत संस्था खोलना चाहते हैं। इस विषयमें बहुत जल्दी सब लोगोंसे सम्मति माँगी जायगी और एक कमेटी संगठित करके संस्था खोलनेका निश्चय किया जायगा। हमारी आन्त. रिक इच्छा है कि इस रकमसे कोई आदर्श संस्था खुले और जैनियों. की जो आवश्यकतायें हैं उनमेंसे किसी एककी सन्तोष योग्य पूर्ति हो ४. शिक्षितोंका कर्तव्य । __ जैनसमाजमें शिक्षितोंकी कमी नहीं। अँगरेजी और संस्कृतके ढेरके ढेर विद्वान् हमारे यहाँ हैं। इनमेंसे जो जितना उच्च शिक्षा प्राप्त है, संस्थाओंके विषयमें उसका सुर उतना ही ऊँचा है । कोई जैनहाईस्कूल खोलना आवश्यक बतलाता है, कोई जैनकालेजके बिना, जैनसमाजकी स्थिति ही असंभव समझता है और कोई एक बड़े भारी संस्कृत विद्यालयकी आवश्यकता प्रतिपादन करता है । इस विषयमें मतभेद होना स्वाभाविक है वह होना ही चाहिए; परन्तु हम यह पूछते हैं कि क्या ये आवश्यकतायें सच्चे जीसे बतलाई जा रही हैं ? इन आवश्यकताओंकी पूर्तिके लिए क्या किसीके हृदयमें कुछ उद्योग करनेकी या थोड़ा बहुत स्वार्थ त्याग करनेकी इच्छा भी कभी उत्पन्न हुई है ? एक दिन था जब आप लोगोंके मुँहसे इस प्रकारका रोना शोभा देता था कि क्या करें जैनियोंमें कोई धन लगानेवाला नहीं है। परन्तु अब Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522792
Book TitleJain Hiteshi 1913 Ank 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1913
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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