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है। इसलिए में अकेला ही स्वयं के पुरुषार्थ क्रान्तिकारी अभियान छोड दिया। धर्म के हिंसा है। से उपसर्गों का सामना कर कर्म क्षय नाम पर होनेवाली हिंसा के विरुद्ध उन्होंने आज वर्षा व पानी की कमी के कारण. करूंगा।"
जनमत तैयार किया- करूणासिंन्धु भगवान कई गाव और नगरोंमें त्राही त्राही मची हुजी भगवान महावीर के अनुयायी जरा महावीर ने “जीओ और जीने दो" का है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण अवर्षा और चिंतन करे- कि- जरा सी परेशानी हुी सिद्धान्त सर्व प्रथम देकर सभी प्राणियोंमें प्राकृतिक असंतुलन, पर्यावण प्रदूषण, वृक्ष नहीं- कि देवी-देवताओं के आगे गिड- आपसमें मैत्री भाव जगाया तथा पशु- बचाओ, पानी बचाओ की बात हम करते गिडाते है. उनसे सहायता मांगते है। जब कि पक्षियोंको अभय दिया। आज विश्व बारूद है. किन्तु भगवान महावीरने २६०० वर्ष पूर्व हकीकत यह है की कोई भी किसीको न सुख के ढेर पर बैठा है- एक ही पलमें आण्विक ही इसकी घोषणा कर दी थी-की- हम पेड दें सकता है न दुःख, अपने-अपने कर्म और एवं रासायनिक हथियारों से एस जगत् को पौधे पानी व पशु पक्षियोंको स्वच्छंद जीने भावना के अनुसार अच्छे और बुरे का पूल स्मशान घाट में तब्दील बनाया जा सकता देंगे तो हम भी जी सकेंगे। यदि हम सुकूनमिलता है।
है- जब तक हम भगवान महावीर की अहिंसा शांति से जीना चाहते हैं तो- “जीओ और भगवान महावीर ने बताया कि तुम ही का पालन कहीं करेंगे तब तक हम स्वयं एवं जीने दो" का पालन करना ही होगा। आज तुम्हारे स्वयं के मित्र हो और तुम ही स्वयंके । संसार का कोई भी प्राणी सुरक्षित रह नहीं हमें महावीर को मानने की नहीं जानने की शत्रू हो। उन्होंने परंपरागत मान्यताओंके बदले सकता। महावीर ने किसी को जानसे मारना जरूरत है- महावीर के प्रभाव में नहीं महावीर नई परंपराओं को जन्म दिया। मानव की तो दूर मात्र मारनेकी कल्पना को भी हिंसा के स्वभाव में आने की जरूरत है। आध्यात्मिक स्वतंत्रता के लिए क्रियाकाण्डों बताया है, किसी के मन को क्लेश पहुंचाना और जातीय एकाधिकार के विरुद्ध उन्होंने या किसी के प्रति मन में दुर्भाव लाना भी
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२० । भगवान महावीर जयंती स्मरणिका २००९