SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ के साथ जीवित जला दी गई हैं। आज के शहीदी जुनून सवार होता है कि अपने से भिन्न श्रमण आवश्यक सूत्र में एक पाठ है, जो सुधारशील युग में यदा-कदा उक्त घटनाएँ धर्म - परम्परा के निरपराध लोगों की सामूहिक हर भिक्षु को सुबह सायं प्रतिक्रमण के समय समाचारपत्रों के पृष्ठों पर आ जाती हैं। यह हत्या तक करने में उन्हें कोई हिचक नहीं होती। उपयोग में लाना होता है। वह पाठ हैकितना भयंकर हत्या-काण्ड है, जो धर्म एवं यह सब उपद्रव देव-मूढता, गुरु-मूढता तथा “मिच्छत्तं परियाणामि सम्मत्तं शास्रों के नाम पर होता आ रहा है। शास्र-मूढता के कारण होते है। प्रज्ञा ही, उक्त उवसंपज्जामि। देवी-देवताओं की प्रस्तर मूर्तियों के आगे मूढताओं को दूर कर सकती है। किंतु धर्म के अबोहिं परियाणामि बोहिं उवसंपज्जामि। मूक-पशुओं के बलिदान की प्रथा भी धार्मिक भ्रम में उसने अपना या समाज का भला-बुरा अन्नाणं परियाणामि, नाणं परम्पराओं के नाम पर चालू है। एक-एक दिन सोचने से इन्कार कर दिया है। उवसंपज्जामि।" में देवी के आगे सात-सात हजार बकरे काट अतः अपेक्षा है, प्रज्ञा की अन्तर-ज्योति पाठ लम्बा है। उसमें का कुछ अंश ही दिए जाते हैं। और, हजारो नर-नारी, बच्चे, को प्रज्वलित करने की। बिना ज्ञान की ज्योति यहाँ उद्धृत किया गया है। इसका भावार्थ है बूढे, नौजवान हर्षोल्लास से नाचते-गाते हैं एवं प्रज्वलित हुए, यह भ्रम का सघन अन्धकार - “मैं मिथ्यात्व का परित्याग करता हूँ और देवी के नाम की जय-जयकार करते हैं। लगता कथमपि दूर नहीं हो सकता। अत: अनेक भारत सम्यक्त्व को स्वीकार करता हूँ। मैं अबोधि है कि मानव के रूप में कोई दानवों का मेला के प्रबुद्ध मनीषियों ने ज्ञान-ज्योति को का त्याग करता हूँ और बोधि को स्वीकार लगा है। विचार-चर्चा करें और विरोध में स्वर प्रकाशित करने के लिए प्रबल प्रेरणा दी है। करता हूँ। मैं अज्ञान का त्याग करता हूँ और उठाएँ, तो झटपट कोई शास्र लाकर सामने श्रीकृष्ण तो कहते हैं - "ज्ञान से बढकर विश्व सम्यक्-ज्ञान को स्वीकार करता हूँ।" खडा कर दिया जाता है। और, पण्डे-पुरोहित में अन्य कुछ भी पवित्र नहीं है" कितने उदात्त वचन हैं ये। काश, यदि हम धर्म-ध्वंस की दुहाई देने लगते हैं। पशु ही क्यों, “न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते।” इन वचनों पर चलें, तो फिर धर्म के नाम पर सामूहिक नर-बलि तक के इतिहास की ये अज्ञान तमस् को नष्ट करने के लिए ज्ञान चल रहे पाखण्डों के भ्रम का अंधेरा मानवकाली घटनाएँ हमे भारतीय इतिहास में मिल की अग्नि ही सक्षम है। श्रीकृष्ण और भी बल मस्तिष्क को कैसे भ्रान्त कर सकता है? अपेक्षा जाती हैं और आज भी मासूम बच्चों के सिर देकर कहते हैं - "हे अर्जुन! जैसे प्रज्वलित है, आज प्रज्ञावाद के पुनः प्रतिष्ठा की! जनकाट कर देवी को प्रसन्न करने के लिए बलि अग्निकाष्ठ समूह को भस्म कर देती हैं, वैसे ही चेतना में प्रज्ञा की ज्योति प्रज्वलित होते ही के रूप में अर्पित कर दिए जाते हैं। ज्ञान रूप अग्नि संपूर्ण कर्मों को भस्म कर देती जाति, पंथ तथा राष्ट्र के नाम पर आए दिन अन्ध-विश्वासों की परम्परा की कथा है होनेवाले उग्रवादी या आतंकवादी जैसे उपद्रवों लम्बी है। कहीं ग्रामीण महिलाएं सर्वथा नग्न “यथैधांसि समिद्धोऽग्निर्भस्मसा- के काले बादल सहसा छिन्न-भिन्न हो सकते होकर वर्षा के लिए खेतों में हल जोतने का त्कुरुतेऽर्जुन। हैं। और, मानव अपने को मानव के रूप में अभिनय करती है। और, कहीं पर पशु बलि ज्ञानाग्निः सर्व-कर्माणि भस्मसात्कुरुते पुनः प्रतिष्ठित कर सकता है। मृत होती हुई एवं नरबलि तक इसके लिए दे दी जाती है। तथा॥" मानवता को जीवित रखने के लिए स्वतंत्र प्रज्ञा-हीन धर्म के चक्कर में भ्रमित होकर - गीता, ४,३७ चिन्तन के रूप में प्रज्ञा की ऊर्जा ही काम दे लोगों ने आत्मपीडन का कष्ट भी कम नहीं उपनिषद साहित्य में सर्व प्रथम मौलिक सकती हैउठाया है। वस्रहीन नग्न होकर हिमालय में रहते स्थान ईशोपनिषद् का है। यह उपनिषद यजुर्वेद “नाऽन्यः पन्था विद्यतेऽयनाय" हैं। जेठ की भयंकर गर्मी में चारों ओर धूनी का अन्तिम अध्याय है। उसका एक सूत्र वचन लगाते है। कांटे बिछाकर सोते हैं। जीवित ही है - 'विद्ययाऽमृतमश्रुते' अर्थात् विद्या से ही मुक्ति के हेतु गंगा में कूदकर आत्महत्या कर अमृत-तत्त्व की उपलब्धि होती है। लेते हैं। और, कुछ लोग तो जीवित ही भूमि तीर्थंकर श्रमण भगवान् महावीर ने भी में समाधि लेकर मृत्यु का वरण भी करते हैं। ज्ञान-ज्योति पर ही अत्यधिक बल दिया है। और, कुछ आत्म-दाह करनेवाले भी कम नहीं मुनि शब्द की व्याख्या करते हुए उन्होंने अन्य हैं। लगता है, मनुष्य आँखो के होते हुए भी किसी बाह्य क्रिया-काण्ड विशेष की चर्चा न अंधा हो गया है। करके मुनित्व के लिए सम्यग्-ज्ञान की ही भगवान महावीरांचे निर्वाणस्थळ धर्म-रक्षा के नाम पर वह कुछ भी कर हेतुता को स्वीकृत किया है असलेल्या पावापुरी या क्षेत्रावर भारत सकता है या उससे कुछ भी कराया जा सकता नाणेण य मुणी होई। उत्तराध्ययन, सरकारने काढलेले पोष्टाचे तिकीट है। धर्म और गुरुओं के नाम पर ऐसा भयंकर २५,३२. 25E भारत INDIA Jumthmand Mahanandsoon Nirmakaninay: RIPATH T भगवान महावीर जयंती स्मरणिका २००९ । १५
SR No.522651
Book TitleBhagawan Mahavir Smaranika 2009
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Sanglikar
PublisherJain Friends Pune
Publication Year2009
Total Pages84
LanguageMarathi
ClassificationMagazine, India_Marathi Bhagwan Mahavir Smaranika, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy