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________________ इसलिए उनके धर्म परिवर्तन का प्रभाव केवल वे उससे विचलित नहीं हुए। दोनों के बीच जनता के आकर्षण का केंद्र बिंदू बन गया वैचारिक स्तर पर होता। जातीय स्तर पर लम्बी चर्चा चली। चर्चा के मध्य रुद्रदेव ने था। किंतु साधुत्व कोई बाल-लीला नहीं है। उसका कोई प्रभाव नहीं होता। कहा, 'मुने! जाति और विद्या से युक्त वह इंद्रिय, मन और वृत्तियों के विजय की विजयघोष के मन में वैचारिक भेद उभर ब्राह्मण ही पुण्यक्षेत्र हैं।' यात्रा है। इस यात्रा में वही सफल हो सकता आया। उसने दर्प के साथ कहा- 'मुने! इस मुनि ने इसका प्रतिवाद करते हुए कहा - है जो दृढ संकल्प और आत्मलक्षी दृष्टि का यज्ञ मंडप में तुम भिक्षा नहीं पा सकते। कहीं जिनमें क्रोध, मान, हिंसा, असत्य, चोरी और धनी होता है। अन्यत्र चले जाओ। यह भोजन वेदविद् और परिग्रह है, वे ब्राह्मण जाति और विद्या से भगवान महावीर ने देखा बहुत सारे श्रमण धर्म के पारगामी ब्राह्मणों के लिए बना है।' विहीन है। वे पुण्यक्षेत्र नहीं हैं। और संन्यासी साधू के वेश में गृहस्थ का ___ मुनि बोले - 'विजयघोष! मुझे भिक्षा मिले तुम केवल वाणी का भार ढो रहे हो। जीवन जी रहे हैं। न उनमें ज्ञान की प्यास है, या न मिले, इसकी मुझे कोई चिन्ता नहीं। वेदों को पढकर भी तुम उनका अर्थ नहीं न सत्य शोध की मनोवृत्ति न आत्मोपलब्धि मुझे इसकी चिन्ता है कि तुम ब्राह्मण का जानते । जो साधक विषम स्थितियों में समता का प्रयत्न और न आंतरिक अनुभूति की अर्थ नहीं जानते।' ___ का आचरण करते हैं, वे ही सही अर्थ में तडप। वे साधु कैसे हो सकते हैं? भगवान् विजयघोष - इसका अर्थ जानने में ब्राह्मण और पुण्यक्षेत्र हैं।' साधु-संस्था की दुर्बलताओं पर टीका करने कौन-सी कठिनाई है? जो ब्रह्मा के मुख से रुद्रदेव को यह बात बहुत अप्रिय लगी लगे। भगवान् ने कहाउत्पन्न ब्राह्मण के कुल में जन्म लेता है, वह उसने मुनि को ताडना देने का प्रयत्न किया। सिर मुंडा लेने से कोई श्रमण नहीं होता। ब्राह्मण है।' किंतु मुनि की तपस्या का तेज बहुत प्रबल ओम का जप करने से कोई ब्राह्मण नहीं मुनि - 'मैं तुम्हारे सिद्धान्त का प्रतिवाद था। उससे रुद्रदेव के छात्र प्रताडित हो गए। होता। करता हूं। जाति जन्मना नहीं होती, वह उस समय सबको यह अनुभव हुआ अरण्यवास करने से कोई मुनि नहीं होता। कर्मणा होती है तप का महत्व प्रत्यक्ष है, वल्कल चीवर पहनने से कोई तापस नहीं मनुष्य कर्म से ब्राह्मण होता है, कर्म से जाति का कोई महत्व नहीं है। होता। क्षत्रिय। जिसके तेज से रुद्रदेव के छात्र हतप्रभ श्रमण होता है समता से। कर्म से वैश्य होता है और कर्म से शूद्र। हो गए। ब्राह्मण होता है ब्रह्मचर्य से। विजयघोष - ‘ब्राह्मण का कर्म क्या है?' वह हरिकेश मुनि चांडाल का पुत्र है। मुनि होता है ज्ञान से। मुनि - 'ब्राह्मण का कर्म है - ब्रह्मचर्य। भगवान महावीर का युग निश्चय ही तापस होता है तपस्या से।' जो व्यक्ति ब्रह्म का आचरण करता है, वह जातिवाद या मदवाद के प्रभुत्व का युग था। 'जैसे पोली मुट्ठी और मुद्रा शून्य खोटा ब्राह्मण होता है। जैसे जल में उत्पन्न कमल उसका सामना करना कोई सरल बात नहीं सिक्का मूल्यहीन होता हैं, वैसे ही व्रतहीन साधु उसमें लिप्त नहीं होता, वैसेही जो मनुष्य काम थी। उसका प्रतिरोध करनेवाले को प्राण- मूल्यहीन होता है। वैडूर्य मणि की भांति में उत्पन्न होकर उसमें लिप्त नहीं होता, उसे समर्पण की तैयारी रखनी ही होती। भगवान् चमकनेवाला कांच जानकार के सामने मूल्य हम ब्राह्मण कहते है। जो राग, द्वेष और भय महावीर ने अभय और जीवन-मृत्यू में समत्व कैसे पा सकता हैं? से अतीत होने के कारण मृष्ट स्वर्ण की भांति की सुदृढ अनुभूति वाले अनगिन मुनि तैयार एक व्यक्तिने भगवान से पूछा - 'भन्ते! प्रभास्वर होता है, उसे हम ब्राह्मण कहते है।' कर दिए। वे जातिवाद के अभेद्य दुर्गों में साधुत्व और वेश में क्या कोई सम्बन्ध है?' __'जो अहिंसक, सत्यवादी और अकिंचन जाते और उद्देश में सफल हो जाते। भगवान् ने कहा, 'कोई भी सम्बन्ध नहीं होता है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं।' २.साधुत्व : देश और परिवेश है, यह मैं कैसे कहूँ? देश व्यक्ति की आंतरिक विजयघोष का विचार परिवर्तन हो गया। वह युग धर्म की प्रधानता का युग था। भावना का प्रतिबिंब है। जिसके मन में उसने कर्मणा जाति का सिद्धान्त स्वीकार कर साधु बनने का बहुत महत्त्व था। श्रमण साधु निस्पृहता के साथ साथ कष्ट सहिष्णुता बढती लिया। बनने पर बहुत बल देते थे। इसका प्रभाव है, वह अचेल हो जाता हैं। यह अचेलता हरिकेश जाति से चांडाल थे। वे मुनि वैदिक परम्परा पर भी पडा । उसमें भी संन्यास का वेश उसके अंतरंग का प्रतिबिंब है।' बन गए। वे वाराणसी में विहार कर रहे थे। को सर्वोपरि स्थान मिल गया। भंते! कुछ लोग नि:स्पृहता और कष्ट उस समय रुद्रदेव पुरोहित ने यज्ञ का विशाल अनेक परम्पराओं में हजारो-हजारो साधु सहिष्णुता के बिना भी अनुकरण बुद्धि से आयोजन किया। हरिकेश उस यज्ञ-वाटिका थे। समाज में जिसका मूल्य होता है, वह अचेल हो जाते हैं। इसे मान्यता क्यों दी में गए। रुद्रदेव ने मुनि का तिरस्कार किया। आकर्षण का केंद्र बन जाता है। साधुत्व जाए?' भगवान महावीर जयंती स्मरणिका २००९ । ११
SR No.522651
Book TitleBhagawan Mahavir Smaranika 2009
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Sanglikar
PublisherJain Friends Pune
Publication Year2009
Total Pages84
LanguageMarathi
ClassificationMagazine, India_Marathi Bhagwan Mahavir Smaranika, & India
File Size4 MB
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