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________________ Vaishali Institute Research Bulletin No. 7 ब्राह्मणों को प्रदान किये गये जो वेदों के ज्ञाता थे तथा जिनके आश्रम में अनेक शिष्य विद्याध्ययन करते थे । 274 दूसरा वर्ग उन ब्राह्मणों का था जो शास्त्रानुमोदित ब्राह्मणोचित कर्मों से विमुख हो गये थे । त्रिपिटक के विवरणों से ज्ञात होता है कि तत्कालीन समाज में ब्राह्मण अनेक प्रकार के कर्म करने लगे थे जैसे - कृषि, शिल्प, व्यापार, सैनिक कर्म, प्रशासन आदि । ११ उनके अनुसार ब्राह्मणों ने अपने प्राचीन आदर्शों का सर्वथा त्याग कर सभी प्रकार के सांसारिक सुख भोगों में अपने को लिप्त कर रखा था तथा अब्राह्मणोचित कर्मों, जैसे--अपने शरीर के अंगों को वस्त्राभूषणों तथा आलेपनों द्वारा सुसज्जित करना, सुस्वादु भोजन करना, मद्य पीना. रथों की सवारी करना, परिचारिकाओं से परिवृत्त रहना, प्रचुर धन-संग्रह करना आदि के सम्पादन में लगे थे ।१२ ( दीघनिकाय के 'ब्रह्मजाल सुत' में उन निषिद्ध कर्मों की एक लंबी एवं विस्तृत सूची दी गई है जिनमें ब्राह्मण रत रहते थे । 13 ) सम्भवतः समाज की परिवर्तनशील परिस्थितियों तथा आर्थिक आवश्यकताओं ने अनेक ब्राह्मणों को इसके लिये बाध्य किया होगा कि वे अपने पैतृक कर्मों – अध्यापन तथा पौरोहित्य का त्याग कर अन्य व्यवसाय में लगें । समाज में वैभव-सम्पन्न ब्राह्मणों का भी अभाव नहीं था । आर्थिक रूप से सम्पन्न इन ब्राह्मणों को 'महाशाल' की संज्ञा से अभिहित किया गया है । सोणदन्ड, कूटदन्त, वारूक्ख, तोदेय्य, कसिभारद्वाज, पोक्खरसाति इत्यादि ब्राह्मण महासालों का उल्लेख पालि पिटक साहित्य में यत्र-तत्र आया है । इन ब्राह्मण महाशालों का अपने क्षेत्र की धर्मभीरु जनता पर काफी प्रभाव था । ऐसे महाशाल ब्राह्मण विपुल भू-संपत्ति के स्वामी होते थे । कसिभारद्वाज के पास इतना खेत था कि खेती के लिए ५०० हलों की आवश्यकता पड़ती थी । १* बुद्ध से पूर्व 'ब्रह्म' और 'ब्राह्मण' शब्द रूढ़ हो चुके थे जो आध्यात्मिक साधना के द्वारा अपने व्यक्तित्व को समायोजित कर जीवन के परम सत्य का साक्षात्कार कर लेते थे वैसे व्यक्ति को ब्राह्मण कहा जाता था । वे आत्मदर्शी होते थे । बाद में चलकर वैसे आत्मदर्शियों के वंश में जन्म लेने वाले भी ब्राह्मण कहे जाने लगे, भले हो उनके कर्म अच्छे न हों और वे आचारवान् न हों। फिर कुछ लोगों ने तपस्वियों, मुनियों, ऋषियों के सूचक चिह्नों को धारण कर, मृगचर्म पहनकर अपने को ब्राह्मण घोषित किया । बुद्ध के अनुसार केवल जन्म के आधार पर किसी को ब्राह्मण नहीं कहा जा सकता । उन्होंने स्पष्टतः घोषित किया कि माता की योनि से उत्पन्न होने के कारण किसी को मैं ब्राह्मण नहीं मानता और न जटा से न गोत्र से और न जन्म से कोई ब्राह्मण होता है । एक जटाधारी को फटकारते हुए भगवान् बुद्ध ने कहा - "हे मूर्ख, जटाओं से तेरा क्या बनेगा और मृगचर्म को पहनने से क्या होगा ? तेरा मन तो राग आदि मलों से भरा है, बाहर क्या धोता है ?१५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522606
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNand Kishor Prasad
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1990
Total Pages290
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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