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________________ सेतुबन्ध में बिम्ब-विधान (क) मानवीय बिम्ब राम-राम भारतीय संस्कृति के आदर्श पुरुष हैं। संस्कृत प्राकृत के अधिकांश कवियों ने राम के आदर्शों के वर्णन में अपने को समर्पित किया है । वाल्मीकि रामायण में राम के अनेक बिम्ब मिलते हैं - बालक, किशोर, घनुर्धर, लोकरक्षक, मर्यादा पुरुषोत्तम आदि । सेतुबन्ध का कवि भी राम के अनेक रूपों का रमणीय बिम्ब उपस्थापित करता है । सर्वप्रथम राम विरहव्यथित और वर्षा ऋतु से आहत सीता- मिलन की आशा से रहित, अतएव विषण्ण दिखाई पड़ रहे हैं । राम का यह कारुणिक बिम्ब कितना मनोज्ञ है । राम ने वर्षा ऋतु में विभिन्न प्रकार के कष्ट सहे, लेकिन अब शरदागमन पर सीतान्वेषण या सीता प्राप्ति के उत्साह से रहित होने के कारण थके-थके लग रहे हैं गमिआ कलम्बयाआ विट्ठ मेहन्यभरिअं गअणअलम् । सहिओ गज्जि असद्दो तह वि हु से णत्थि जोविए आसङ्घ ॥ " इस गाथा में राम के विरहव्यथित हृदय के अतिरिक्त वर्षाकालीन पवन, घनान्धकार युक्त आकाश तथा मेघ गर्जन के सुन्दर बिम्ब एक ही साथ उपस्थित हैं, इसलिए श्लिष्ट बिम्ब चित्र अत्यन्त सुन्दर बन पड़ा है हिज्ज झिण्णावि वणू अट्ठिअवाहं पुणो परूण्णं व मुहम् । रामस्स अईसन्ते आसाबन्धे ध्व चिरगए हणुमन्ते ॥ 10 क्षीण शरीर में स्थित वाष्प ( अन्तःअश्रु ) से राम का मुख पड़ रहा है । आह ! सीता-मिलन की कितनी व्यग्रता है पुरुष-नायक ही जान सकता है । रुआँसे मुख का बिम्ब अत्यन्त रमणीय है । 247 इस गाथा में विरही मन के विभिन्न भावों के खोयी वस्तु की सहसा प्राप्ति पर विश्वास नहीं होता का रूपायन भी किया गया है । पुनः रोते हुए की तरह दिखलाई राम में । यह तो कोई रामसदृश हनुमान् के द्वारा सीता विषयक समाचार सुनाए जाने पर राम की स्थिति अत्यन्त भावात्मक हो जाती है । जब हनुमान् ने कहा कि 'सीता को देखा है' तो राम ने विश्वास नहीं किया, ' क्षीण शरीर वाली हो गई है' यह जानकर आकुलित होकर उन्होंने गहरी साँस ली. 'तुम्हारी चिन्ता करती है, प्रभु रोने लगे और 'सीता सकुशल जीवित है'' यह सुनकर राम ने हनुमान् का गाढालिङ्गन किया- बिट्ठ त्ति ण सद्दहिअं क्षीण त्ति सबाहमन्धरं णीससिअम् । सोअइ तुमं ति सण्णं पहुणा जिअ त्ति मारुई उवउढो ॥११ Jain Education International बिम्ब एक साथ उपस्थित हो रहे हैं तथा इस लोक शास्त्र प्रथित सैद्धान्तिक तथ्य रावण के अपराध का चिन्तन कर राम का क्रोधाभिभूत मुख सूर्यमण्डल की तरह कठिन दर्शन योग्य हो गया है बाहमइलं पितो से दहमुह चिन्तावि अम्भमाणामरिसम् । wi क्वाकोअं जरढ़ा अन्तरविमण्डलं मिवचमणम् ॥ १३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522606
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNand Kishor Prasad
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1990
Total Pages290
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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