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________________ 248 Vaishali Institute Research Bulletin No. 7 क्रोधाभिभूत मुख का चित्रण अत्यन्त रमणीय है । उसकी उपमा सूर्य मण्डल से दी गई है जिससे मुख-बिम्ब अत्यन्त स्पष्ट एवं सहज संवेद्य हो जाता है । एक गाथा में कवि ने राम के त्रैलोक्य उद्धारक, अत्यन्त विस्तृत एवं सर्वव्यापक चित्र को बिम्बित करने का श्लाघनीय प्रयास किया है रक्सिज्जड तेल्लोक्कं पलअसमुद्विहुरा परिज्जइ वसुहा । उद्धव विमुज्जह साअरे त्तिविह्यमणिज्जम् ॥ १७ एक स्थल पर कृश राम बायें हाथ से प्रिय पयोधर स्पर्श-सुख से विमुख वक्षःस्थल को सहलाते हुए दिखाई पड़ रहे हैं- तो पाअडबोधवलं पाट्ठपि आप ओहरफ रिससुहम् । वच्छं तमालणीलं पुणो पुणो वामकरअलेन मलेन्तो ॥ १४ उनके शरीर की कृशता, स्पर्शं सुख राहित्य, तथा नीले-नीले वक्षःस्थल का बिम्ब अत्यन्त रमणीय है । चतुर्दश आश्वास में धनुर्धर राम का अत्यन्त आकर्षक बिम्ब संघटित हो रहा है । रावण को प्राप्त न करने से अलस भाव से राम राक्षसों का वध कर रहे हैं । उनके भयंकर वाणों के भय से राक्षस दिशाओं में भाग रहे हैं, अतएव वानर राक्षसों को न मार सकने के कारण खिन्न हो इधर-उधर घूम रहे हैं । राक्षसों के अस्त्र राम बाण से मध्यमार्ग में क्षीण हो जाते हैं, वानरों तक नहीं पहुँच पाते । इस प्रकार लगभग १४ गाथाओं में धनुर्धर राम का बिम्ब अत्यन्त सुन्दर एवं आह्लादक है । एक तरफ धनुर्धर एवं वीर राम का चित्र अत्यन्त उत्साहवर्धक है तो दूसरी तरफ नाग पाश से आविद्ध होकर गिरे हुए विवश एवं असहाय राम का बिम्ब अत्यन्त कारुणिक है । राम और लक्ष्मण के सम्पूर्ण शरीर सर्पमय बाणों से विदीर्ण हो गये हैं, अवयव छिन्न-भिन्न हो गए हैं तथा थोड़े-थोड़े दिखाई देने वाले बाण मुख में रुधिर जम गये हैं । इस प्रकार सर्प-बाण से कसकर जकड़ जाने के कारण संज्ञाहीन होकर गिरे राम और लक्ष्मण का बिम्ब अत्यन्त हृदयविदारक रूप में प्रस्तुत हो रहा है । १५ लक्ष्मण मरण की आशंका से शोक संतप्त एवं विलाप करते हुए राम का बिम्ब सहृदयों के हृदय में करुणा का उद्रेक कर रहा है । Jain Education International लक्ष्मण - महाकवि प्रवरसेन ने अनेक स्थलों पर लक्ष्मण का रमणीय बिम्ब उपस्थापित किया है । सीतान्वेषण काल में रामानुगामी तथा विरहकातर रूप में, युद्धकाल में बीरमनुर्धर के रूप में तथा नागपाश एवं शक्तिबाण से आहत लक्ष्मण का बिम्ब अत्यन्त हृद्य बन पड़ा है । नागपाश में लिपटे संज्ञाहीन राम के साथ लक्ष्मण का बिम्ब मर्मविदारक है ताण भुअङगपरिगआ दुक्खपहुव्वन्तविअर भोगावेढा । जाओ धिरणिवकप्पा मतअअड्डप्पण्णचन्दणडुम व्व भुआ ॥" For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522606
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNand Kishor Prasad
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1990
Total Pages290
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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