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________________ 246 Vaishali Institute Research Bulletin No. 7 के कुछ अंश को अपने द्वारा उद्बुद्ध भावों एवं अनुषंगों के माध्यम से पाठक तक सम्प्रेषित करता है।" आधुनिक हिन्दी आलोचक काव्य-बिम्ब में चित्रात्मकता एवं इन्द्रियगम्यता को अनिवार्य मानते हैं । डॉ. नगेन्द्र के अनुसार काव्य-बिम्ब पदार्थ के माध्यम से कल्पना द्वारा निर्मित एक ऐसी मानस छवि है जिसके मूल में भाव की प्रेरणा रहती है। इस प्रकार स्पष्ट होता है कि कवि के हृदयगत एवं संस्कारगत मनोभावों की बाह्याभिव्यक्ति अथवा पाठक संसार तक उसका संक्रमण काव्य-बिम्ब है। सहृदय पाठक के सामने काव्य-श्रवण मात्र से ही विविध प्रकार के भाव अभिव्यंजित होने लगते हैं, चित्र उभरकर सामने आने लगते हैं। सेतुबन्ध में बिम्ब सेतुबन्ध में १६ बार बिम्ब शब्द का प्रयोग छाया, प्रतिच्छाया, प्रतिकृति आदि अर्थों में हुआ है । चन्द्र-बिम्ब एवं सूर्य-बिम्ब के रूप में इसक अधिक प्रयोग हुआ है यथा ससि विम्बम् १/२५, ३/३६, ९/७१, ९/७७, १०/३४, १०/३५, १२/४, १०/८०, १५/४२। पडिबिम्बम् २/२। दिवामर बिम्बम् १०/३८ । दिणअर बिम्बम् १०/१०, १५ रई बिम्बम् १०/८ रईबिम्बणिहा १४/२ । बिम्बो १०/४८। वर्गीकरण सर्वप्रथम हम सेतुबन्ध में प्राप्त बिम्बों का वर्गीकरण स्रोतों के आधार पर करेंगे। उसमें दो वर्ग है (क) मानवीय और (ख) मानवेतर । मानवीय बिम्बों में राम, सीतादि के बिम्ब परिगृहीत है। मानवेतर बिम्बों के अनेक वर्ग है-प्रकृति, युद्ध, प्रकाश, पेयद्रव्य, एवं देवादि से सम्बद्ध बिम्ब । यतः बिम्बों का ग्रहण मुख्यतः इन्द्रियों ही करती है, अतएव इन्द्रियों के आधार पर भी बिम्बों का विभाजन करेंगे (१) बाह्य करणेन्द्रिय ग्राह्य-शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध । (२) अन्तःकरणेन्द्रिय ग्राह्य-भाव, प्रज्ञा । (क) भाव बिम्ब-भक्ति, रति, अनुराग, लज्जा, अरति, मद, संताप, व्याधि, हर्ष, विषाद, उत्साह, शोक, संशय, काम, मूळ, वेदना । (ख) प्रज्ञा बिम्ब-कीति, यश, नियम, मन्त्र, आज्ञा, चरित्रादि । इन दो विभागों के अतिरिक्त अन्य प्रकार से भी विभाजन किए जा सकते हैं, लेकिन विस्तार भय से सबका विवेचन संभव नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522606
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNand Kishor Prasad
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1990
Total Pages290
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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