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अध्यात्म और विज्ञान
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निर्णय लेना होगा कि वे वैज्ञानिक शक्तियों का प्रयोग मानवता के कल्याण के लिए करना चाहते हैं या उसके संहार के लिए । आज तकनिकी प्रगति के कारण मनुष्य मनुष्य के बीच दूरी कम हो गई है । आज विज्ञान ने मानव समाज को एक दूसरे के निकट लाकर खड़ा कर दिया है । आज हम परस्पर इतने निर्भर बन गये हैं कि एक दूसरे के बिना खड़े भी नहीं रह सकते किन्तु दूसरी ओर आध्यात्मिक दृष्टि के अभाव के कारण हमारे हृदयों की दूरी अधिक विस्तीर्ण हो गई है । हृदय को इस पूरी को पाटने का काम विज्ञान नहीं अध्यात्म ही कर सकता है ।
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मनुष्य को आज यह समझना है कि
विज्ञान का कार्य है विश्लेषित करना और अध्यात्म का काम है संश्लेषित करना । विज्ञान तोड़ता है, अध्यात्म जोड़ता है । विज्ञान वियोग है तो अध्यात्म संयोग | विज्ञान परकेन्द्रित है तो अध्यात्म आत्म- केन्द्रित | विज्ञान सिखाता है कि हमारे सुख-दुःख का केन्द्र वस्तुएँ हैं, पदार्थ हैं इसके विपरीत अध्यात्म कहता है कि सुख-दुःख का केन्द्र आत्मा है | विज्ञान की दृष्टि बाहर देखता है अध्यात्म अन्तर में देखता है। विज्ञान की यात्रा अन्दर से बाहर की ओर है तो अध्यात्म की यात्रा बाहर से अन्दर की ओर यदि यात्रा बाहर की ओर होती रही तो वह शान्ति जिसकी उसे खोज है क्योंकि बहिर्मुखी यात्री शान्ति की खोज वहाँ करता है जहाँ वह नहीं है उसकी बाहर खोज व्यर्थ है । इस सम्बन्ध में एक रूपक याद आता है । वक्त कुछ सी रही थी । संयोग से अंधेरा बढ़ने लगा और सूई उसके हाथ और गिर पड़ी । महिला की झोपड़ी में प्रकाश का साधन नहीं था की खोज असम्भव थी । बुढ़िया ने सोचा क्या हुआ। अगर प्रकाश खोजा जाये । वह उस प्रकाश में सूई खोजती रही, खोजती रही
कभी नहीं मिलेगी ।
। शान्ति अन्दर है एक वृद्धा शाम के से छूट कर कहीं और प्रकाश के बिना सूई बाहर है तो सूई को वहीं किन्तु सूई वहाँ कब मिलने
था कि कोई यात्री उधर से उसने पूछा अम्मा सुई गिरी कहाँ किन्तु उजाला बाहर था इसलिए जो चीज जहाँ नहीं है वहाँ
बाली थी, क्योंकि वह वहाँ थी ही नहीं । प्रातः होने वाला निकला, उसने वृद्धा से उसकी परेशानी का कारण पूछा। थी । वृद्धा ने उत्तर दिया बेटा सूई गिरी तो झोपड़ी में थी मैं यहाँ खोज रही हूँ । यात्री ने उत्तर दिया यह सम्भव नहीं है खोजने पर मिल जाय । सूर्य का प्रकाश होने को है उस प्रकाश है । आज मनुष्य समाज की स्थिति भी उसी वृद्धा के समान है । हम रहे हैं जहाँ वह होती ही नही । शान्ति अध्यात्म में है अन्दर है । विज्ञान के सहारे आज शान्ति की खोज के प्रयत्न उस बुढ़िया के प्रयत्नों के समान निरर्थक ही होंगे । विज्ञान, साधन सकता है, शक्ति दे सकता है किन्तु लक्ष्य का निर्धारण तो हमें ही करना होगा ।
में
सूई वहीं खोजे जहाँ गिरी शक्ति की खोज वहाँ कर
आज विज्ञान के कारण मानव के पूर्वस्थापित जीवनमूल्य समाप्त हो गये हैं । आज श्रद्धा का स्थान तर्क ने ले लिया । आज मनुष्य पारलौकिक उपलब्धियों के स्थान पर इहलौकिक उपलब्धियों को चाहता है । आज के तर्क-प्रधान मनुष्य को सुख और शान्ति के नाम पर बतलाया नहीं जा सकता लेकिन दुर्भाग्य यह है कि आज हम अध्यात्म के अभाव में नये जीवनमूल्यों का सृजन नहीं कर पा रहे हैं । आज विज्ञान का युग है । आज उस धर्म को जो
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