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________________ 12 Vaishali Institute Research Bulletin No. 7 लक्ष्य का बोध नहीं । जिस प्रकार अन्धे और लंगड़े दोनों ही परस्पर सहयोग के अभाव में दावानल में जल मरते हैं ठीक इसी प्रकार यदि आज विज्ञान और अध्यात्म परस्पर एक दूसरे के पूरक नहीं होंगे तो मानवता अपने ही द्वारा लगाई गई विस्फोटक शस्त्रों की आग में जल मरेगी। बिना विज्ञान के संसार में सुख नहीं आ सकता और बिना अध्यात्म के शांति नहीं आ सकती । मानव समाज की सुख और शान्ति के लिए दोनों का परस्पर सहयोग होना आवश्यक है । वैज्ञानिक शक्तियों का उपयोग मानव कल्याण में हो या मानव के संहार में हो इस बात का निर्धारण विज्ञान से नहीं, आत्मज्ञान या अध्यात्म से होगा । अणु शक्ति का उपयोग मानव के संहार में हो या मानव के कल्याण में यह निर्णय करने का अधिकार उन वैज्ञानिकों को भी नहीं है, जो सत्ता, स्वार्थ और समृद्धि के पीछे अन्धे हैं । यह निर्णय तो मानवीय विवेक से ही करना होगा। यह सत्य है कि विज्ञान के सहयोग से तकनीक का विकास हुआ और उसने मानव के भौतिक दुःखों को बहुत कुछ कम कर दिया । किन्तु दूसरी ओर मारक शक्ति के विकास के द्वारा भय या संत्रास की स्थिति उत्पन्न कर मानव की शान्ति को भी छीन लिया है । आज मनुष्य जाति भयभीत और विस्फोटक अस्त्रों के ज्वालामुखी पर खड़ा है, कब विस्फोटक होकर निगल ले यह कहना कठिन है । संत्रस्त है। आज वह हमारे अस्तित्व को पूज्य विनोबा जी लिखते हैं " जो विज्ञान एक ओर क्लोरोफार्म की खोज करता है जिससे करुणा का कार्य होता है । वही विज्ञान अणु अस्त्रों की खोज करता है जिससे भयंकर संहार होता है । एक बाजू सिपाही को जख्मी करना दूसरी बाजू उसको दुरुस्त करना ऐसा गोरखधन्धा आज विज्ञान की मदद से चलता है । इस हालत में विज्ञान का सारा कार्य उसको मिलने वाले मार्गदर्शन पर आधारित है उसे जैसा मार्गदर्शन मिलेगा वह वैसा कार्य करेगा ।" यदि विज्ञान पर सत्ता के आकांक्षियों का, राजनीतिज्ञों का और अपने स्वार्थ की रोटी सेने वालों का अधिकार होगा तो यह मनुष्य जाति का संहारक बनेगा । इसके विपरीत यदि विज्ञान पर मानव मंगल के स्रष्टा अनासक्त ऋषियों-महर्षियों का अधिकार होगा तो वह मानव के विकास में सहायक होगा। आज हम विज्ञान के माध्यम से तकनीकी प्रगति को उस ऊँचाई तक पहुँच चुके हैं जहाँ से लौटना भी सम्भव नहीं है । आज मनुष्य उस दोराहे पर खड़ा है, जहाँ पर उसे हिंसा और अहिंसा के दो राहों में से किसी एक को चुनना है । आज उसे यह समझना है कि वह विज्ञान के साथ किसको जोड़ना चाहता है । हिंसा को या अहिंसा को । आज उसके सामने दोनों विकल्प प्रस्तुत हैं । विज्ञान + अहिंसा = विकास । विज्ञान + हिंसा: विनाश । जब विज्ञान अहिंसा के साथ जुड़ेगा तो वह समृद्धि और शान्ति लायेगा किन्तु जब उसका गठबन्धन हिंसा से होगा तो संहारक होगा - अपने ही हाथों अपना विनाश करेगा । आज विज्ञान के सहारे मनुष्य ने पाशविक बल रक्षक ही रहे भक्षक न बन जाय वह उसे सोचना है । "आत्थि सत्येन परंपरं । नत्थि असत्थेन परंपरं ।" शस्त्र है किन्तु अशस्त्र से बढ़कर अन्य कुछ नहीं हो सकता । आज सम्पूर्ण मानव संग्रहीत कर लिया है । वह उसके महावीर ने स्पष्टरूप से कहा था एक से बढ़कर एक हो सकता समाज को यह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522606
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNand Kishor Prasad
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1990
Total Pages290
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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