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________________ Vaishali Institute Research Bulletin No. 7 पारलौकिक जीवन की सुख-सुविधाओं के नाम पर मानवीय भावनाओं का शोषण करता रहा, जाना होगा। आज तथाकथित वे धर्म-परम्परायें जो मनुष्य को भविष्य के सुनहले सपने दिखाकर फुसलाया करती थी अब तर्क की पैनी छैनी के आगे अपने को नहीं बचा सकती । अब स्वर्ग में जाने के लिये नहीं जीना है अपितु स्वर्ग को धरती पर लाने के लिये जीना होगा । विज्ञान ने हमें वह शक्ति दे दी है। जब स्वर्ग को धरती पर उतारा जा सकता है तब यदि हम इस शक्ति का उपयोग धरती पर स्वर्ग उतारने के स्थान पर धरती को नरक बनाने में करेंगे तो इसकी जवाबदेही हम पर ही होगी । आज वैज्ञानिक शक्तियों का उपयोग इस दृष्टि से करना है कि वे मानव-कल्याण में सहभागी बनकर इस धरती को ही स्वर्ग बना सकें। विनोबा जी ने सत्य ही कहा है, आज विज्ञान का तो विकास हुआ किन्तु वैज्ञानिक उत्पन्न ही नहीं हुआ। क्योंकि वैज्ञानिक वह है जो निरपेक्ष होता है। आज का वैज्ञानिक राजनीतिज्ञों और पूंजीपतियों के इशारे पर चलनेवाला व्यक्ति है । वह पैसे से खरीदा जाता है। यह तो वैज्ञानिक की गुलामी है। ऐसे लोग अवैज्ञानिक हैं । यदि वैज्ञानिक वैज्ञानिक नहीं बना तो विज्ञान मनुष्य के लिए घातक ही सिद्ध होगा। आज विज्ञान का उपयोग कैसा किया जाय इसका उत्तर विज्ञान के पास नहीं अध्यात्म के पास है । विनोबा जी लिखते है कि आज युग की मांग है । विज्ञान की जितनी ही शक्ति बढ़ेगी, आत्म-ज्ञान को उतनी ही शक्ति बढ़ानी होगी। आज अमेरिका इसलिए दुःखो है कि वहाँ विज्ञान तोहेअध्यात्म है नहीं अतः सुख तो है शान्ति नहीं । इसके विपरीत भारत में आध्यात्मिक विरासत के कारण मानसिक शान्ति तो है किन्तु समृद्धि नहीं। आज जहाँ समृद्धि है वहाँ शान्ति नहीं और जहाँ शान्ति वहाँ समृद्धि नहीं। इसका समाधान अध्यात्म और विज्ञान के समन्वय में निहित है । अध्यात्म शान्ति देगा तो विज्ञान समद्धि । तब समृद्धि और शान्ति दोनों ही एक साथ उपस्थित होगी। मानवता अपने विकास के चरम शिखर पर होगा। मानव स्वयं अतिमानव के रूप में विकसित हो जायगा। किन्तु इसके लिए प्रयत्न करना होगा । बिना अडिग आस्था और सतत पुरुषार्थ के यह सम्भव नहीं। आज विज्ञान ने मनुष्य को सुख-सुविधा और समृद्धि तो प्रदान कर दी फिर भी मनुष्य भय और तनाव की स्थिति मे जो रहा है। उसे आन्तरिक शान्ति उपलब्ध नहीं है उसको समाधि भग हो चुको है । यदि विज्ञान के माध्यम से कोई शान्ति आ सकता है तो वह केवल श्मशान की शान्ति होगी। बाहरी साधनों से न कभी आन्तरिक शान्ति मिली है न उसका मिलना सम्भव ही है । इस प्रसंग में उपनिषदों का एक प्रसंग याद आ रहा है। नारद जीवन भर वेद-वेदांग का अध्ययन करते रहे । उन्होंने अनेक विद्यायें (भौतिक विद्याय) प्राप्त कर लीं किन्तु उनके मन को कहों सन्तोष नहीं मिला। वे सनत्कुमार के पास आये और कहने लगे मैंने अनेक शास्त्रों का अध्ययन किया । मैं शास्त्रविद् तो है ऋग्वेदे भगवोऽध्येमि यजुर्वेद सामवेदमाशिर्वणं चतुर्थमितिहासपुराणं पंचमं वेदानां वेदं पित्यं राशि देवं निधि वाकोवाक्यमेकायनं देवविद्यां ब्रह्मविदां भूतविद्यां नक्षत्रविद्यां सपैदेव जनविद्यामेतद्भगवोऽध्येमि ॥ ७१।२ सोऽहं भगवोऽमन्त्रविदेवास्मि नास्मवित् ७।१३ छान्दोग्य। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522606
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNand Kishor Prasad
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1990
Total Pages290
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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