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Vaishali Institute Research Bulletin No. 7
[२] ह्रस्व स्वर के परवर्ती श्च और त्स, थ्य के स्थान में च्छ हुआ है और नेपथ्य के अर्थ में
पकार का वकार भी हुआ है । यथा(i) स = छ-उत्साह-उच्छाह (सेतु० १४१४४) (कुमा० ११७१ : ५।७८);
मत्सर % मच्छरो (गउ०८०); उत्साह = उच्छाह (लीला० १५०)। (ii) श्च = च्छ-पश्चात् = पच्छा (सेतु० ८२८) (कुमा० ६१५६)।
पश्चात्कुसुमं = पच्छाकुसुमं (गउ० ६९); पश्चिम = पच्छिम (लीला.
११३२; ११७४)। (iii) व्य = छ-मिथ्या = मिच्छा (सेतु० ८५१)। (iv) नेपथ्य-णेवच्छ (सेतु० १२०६६) (गउ०७४४) (कुमा० २।३६) (लीला० १३३) । [३] त्य तथा श्च के स्थान च्च का आदेश हुआ है । यथा(i) त्य = च-पत्यक्षात् = पच्चक्खाहि (सेतु० ४।२७); दैत्या=दइच्चा (गउ० १०१९)
प्रत्यक्षं = पच्चक्खं (लोला० २६७)। (ii) श्व = च्च-निश्चल = णिच्चलं (सेतु० ११।४२) (कुमा० ३।३२; ७१७९) तथा
(लीला० १९५)। [४] द्य और र्य का ज्ज आदेश हुआ है । यथा(i) छ = उज-छिद्य = छिज्ज (सेतु० १३१९०); विद्यन्ते = खिज्जति (गउ० ७२);
विद्या=विज्जा (कुमा० ३।२२); उद्यान=उज्जाण (लीला० ५९,३५८)। (ii) यं = ज्ज-कार्य = कज्ज ( सेतु० ३।३९) विकीर्यमाणारुण = विइज्जंतारुण
(गउ० ३३४); कार्य = कज्ज (कुमा० ५।३८; ६।४०) तथा
(लीला० १४)। [५] ष्ट के स्थान पर टठ का आदेश हुआ है । यथा
दुष्टं = दिटुं (सेतु० १११७४); प्रकोष्ट = पउट्ठ (गउ• ३६६)।
धृष्टद्युम्न = धट्ठज्जुण (कुमा० ३।४३); शिष्ट = सिटुं (लीला० १०४; १८४) । [६] द; ध्य; ध्म का ज्झ तथा ध्य का म्भ आदेश हुआ है। यथा
(i) द्ध = जश-युद्ध = जुज्झ (सेतु० १५.६२) (कुमा० ६१५३) (लोला० १०९) (ii) ध्य = झ-मध्य = मज्झ (सेतु० १११६८); विन्ध्य = विउझ (गउ० ३३८)।
मध्य = मज्झ (कुमा० ३।४१; ४।२५) (लीला० १६२, २०६) । (i) ध्म = ज्झ-विध्मापयति = विज्झवेइ (सेतु० ५।६८);
विध्मात = विज्झाअ (सेतु० ५।६८)। (iv) व्य = म्भ-रुध्यते = रुम्भइ (सेतु० ८.६३) ।
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