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________________ 170 Vaishali Institute Research Bulletin No. 7 कन्याओं को गणित, लिपि और भाषा की शिक्षा दी थी।' इसका समर्थन पुरुदेवचम्पू में भी प्राप्त है”। आदिपुराण से यह स्पष्ट है कि कन्याओं की शिक्षा अनिवार्य मानी गयी है। इसमें भी पूर्व कथन की पुष्टि होती है। "अतिशय सुन्दरी देवी ने संख्याओं के मान क्रम, गणितशास्त्र एवं वाङ्मय का विशेष अध्ययन किया। यहाँ पर स्मरणीय है वाङ्मय का तात्पर्य व्याकरण, अलङ्कार और छन्द से है। ब्राह्मी और सुन्दरी दोनों कन्याओं का पद ज्ञान व्याकरण श्लाघनीय था। उन्होंने आगम ज्ञान, समस्त विद्याएँ और कलाएं अपने पिता के अनुग्रह से प्राप्त को थीं। अपनी बुद्धि और श्रम के कारण ने साक्षात् सरस्वती के समान प्रतीत होती थीं। क्षत्र चूड़ामणि में आया है कि गुणमाला ने जीवन्धर के पास प्रेम-पत्र भेजा था तथा प्रत्युत्तर में जीवन्धर ने भी प्रेम-पत्र लिखा था, जिसे पढ़कर वह बहुत प्रसन्न हुई थी। शान्तिनाथचरित में वर्णित सत्यकि पुत्री सत्यभामा भी विदुषी थी। धर्मामृत में आई हुई अनन्तमती की कथा से भी यह सिद्ध होता है कि माता-पिता किशोरावस्था में अपनी पुत्रियों को शिक्षा हेतु आर्यिका के समक्ष छोड़ देते थे। आर्यिकाएँ धर्म, आचार, गणित, एवं आगम आदि की शिक्षा देकर उन्हें सुशिक्षित बनाती थीं । तीथंकरों की माताएं देवियों के प्रश्नों का उत्तर देती है, समस्यापूर्ति करती हैं और पहेलियाँ भी बुझाती हैं जैसा कि आदि पुराण में भी वणित है। इस प्रकार का ज्ञान वैदुष्य के बिना सम्भव नहीं है । दमितार अपनी पुत्री कनकधी को नृत्य संगीत की शिक्षा के लिए किराती एवं बावरी के वेषधारी अनन्तवीर्य को सौंपता है।" शिक्षा की पद्धति क्या थी और कितने वर्ष का पाट्य-क्रम था, इस की स्पष्ट जानकारी तो प्राप्त नहीं होती, पर पौराणिक आख्यानों से इतना अवश्य स्पष्ट होता है कि कन्याएँ आर्थिकाओं के सान्निध्य में विवाह वय प्राप्त होने के पूर्व तक निवास करती थीं। धर्मामृत के नवम आख्यान से स्पष्ट ज्ञात होता है कि विद्याधर कुमारियाँ विभिन्न प्रकार की विद्याओं की साधना भी करती थीं। सीता, सोमा और रोहिणी के आख्यान भी उनके सुशिक्षित होने की ओर संकेत करते हैं। १. पद्मानन्द, बड़ौदा (१९३२ ई०)। २. क्षत्र चूडामणि ४।४३ । ३. शान्तिनाथचरित, १११२१-२२ । ४. वीरनन्दीकृत चन्द्रप्रभचरित, १६७० । . धर्मशर्माभ्युदय, पंचम सर्ग असगकविकृत वर्द्धमान चरित, १७१३२-३८ । ५. शान्तिनाथचरित, ९७१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522606
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNand Kishor Prasad
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1990
Total Pages290
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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