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________________ जैन वाङ्मय में नारी-शिक्षा 169 नारी और पूज्य साध्वी कठोर अनुशासन से एक अमर स्थान प्राप्त करती हैं और सैकड़ों हजारों नारियों का साध्वी-संघ भारत भूमि को पवित्र करता है ।' जैन धर्म नारी जीवन में आध्यात्मिकता को सींचता है जितना कि अन्य कोई प्राचीन संस्कृति नहीं सींचती। वैदिक परम्परा पतिव्रता नारी उत्पन्न करती है, बौद्ध परम्परा आठ गुरु धमों में जकड़ी नीति प्रधान नारी को उत्तेजन देती है। जैन संस्कृति नारी में चाहे उसका गृहस्थ जीवन हो अथवा संन्यास जीवन हो आध्यात्मिक भावना की स्रोतस्विनी बहा कर उसे अपने जीवन के लिए अत्यन्त कर्तव्यशील और निष्ठावान बनाती है। ___जैन तीर्थंकरों ने अपने धर्मसंघ की स्थापना करते समय साधुओं के साथ साध्वियों एवं श्रावकों के साथ श्राविकाओं को भी समान स्थान देकर चतुर्विध संघ की स्थापना की । पुरुषों की अपेक्षा स्त्री समाज में धार्मिक भावना की अधिकता आरम्भ से प्रतीत होती है। इसीलिए तीर्थकर के साधु एवं धावकों से साध्वियों और श्राविकाओं की संख्या प्रायः दुगनो-तिगुनी पाई जाती है। सम्भवतः नारियों को तीथंकरों के समवसरण में भाग लेते हुए देख कर ही इसी का अनुकरण करते हुए अपनी विमाता महाप्रजापती गोतमी तथा अपने प्रिय शिष्य आनन्द के अनुरोध से बुद्ध ने स्त्रियों को संघ में प्रवेश की अनुमति किसी तरह दे दी थी। परन्तु कुछ धार्मिक शिक्षा या शील के अतिरिक्त, "ऐसी स्थिति में यह अनुमान युक्तिसंगत नहीं कि बौद्ध धर्म के मध्याह्न में भी भारत में भिक्खुनी संघ ने स्त्री शिक्षा के लिए विशेष कार्य किए।" नारियों के अध्ययन के विषय जैन वाङ्मय में निबद्ध आख्यानों से यह सिद्ध होता है कि पुरुषों के समान ही नारी शिक्षा का प्रचार था। "आदि देव भगवान् ऋषभदेव ने पुरुष को ७२ कलाएँ और स्त्रियों को ६४ कलाएँ सिखलाई।" पद्यानन्द काव्य में वर्णित "ऋषभदेव ने पुत्रों के समान ही १. अगरचन्द नाहटा : कतिपय श्वेताम्बर विदुषी कवयित्रियाँ (चन्दाबाई अभिनन्दन ग्रन्थ, १९५४) पृ० ५७२ । २. अट्ठगुरुधम्मा-'चुल्लबग्गपालि' (नालन्दा सं०), पृ० ३७४-७५ । ३. अगरचन्द नाहटा : कतिपय श्वेताम्बर विदुषी कवयित्रियाँ (चन्दाबाई अभिनन्दन ___ ग्रन्थ, १९५४), पृ० ५७३ ।। ४. वही, पृ० ५७०-७१ । 4. "It seems hardly safe, therefore to conjecture that even when Buddhism was at its zenith in India it did very much for the education. -F.E. Keay : Indian Education in Ancient & Later Times, 74. ६. अगरचन्द नाहटा : कतिपय श्वेताम्बर विदुषी कवयित्रियाँ, पृ० ५७०-१ (चन्दाबाई अभिनन्दन ग्रन्थ)। २२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522606
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNand Kishor Prasad
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1990
Total Pages290
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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