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________________ मध्यकालीन जैन साहित्य का ऐतिहासिक मूल्यांकन 161 इस उल्लेख से हमें पद्धड़िया छन्द और उससे विकसित कडवक-छन्द का इतिहास तो प्राप्त हो ही जाता है, उससे यह भी ज्ञात होता है कि पद्धडिया-छन्द अथवा कडवक-छन्द प्रारम्भ से अपभ्रंश के प्रबन्ध काव्यों का प्रमुख छन्द रहा है । इसकी पुष्टि अपभ्रंश के निजी छन्द "दोहा" के प्रयोग से होती है । क्योंकि दोहा छन्द का व्यवहार मुक्तक काव्य के क्षेत्र में सम्पन्न होता था। जिस प्रकार संस्कृत का अनुष्टुप छन्द और प्राकृत का गाथा-छन्द निजी छन्द माने जाते हैं, उसी प्रकार दोहा छन्द अपभ्रंश का अपना छन्द है । चउमुह या चउराणण के छन्द-विषयक उल्लेख से प्रबन्ध के लिए व्यवहृत होने वाले पद्धडिया-छन्द की सूचना विशेष उपयोगी है। इससे यह भी सिद्ध होता है कि चउमुह की रचना प्रबन्धात्मक थी। (२) त्रिभुवन-स्वयम्भू के अनुसार चउमुह ने महाभारत की "गोग्रहणकथा" को इतने सरस-रूप में लिखा था कि उसका अन्यत्र उदाहरण अत्यन्त दुर्लभ था।' स्वयम्भूछन्दस् में चउमुहकृत कुछ ऐसे पद्य भी उद्धृत हैं, जिनका वर्ण्य-विषय रामकथा से सम्बन्ध रखता है। कुछ ऐसे भी पद्य है, जो आचार एवं सिद्धान्त का प्रतिपादन करते हैं। इससे प्रतीत होता है कि चउ मुह ने 'महाभारत' के अतिरिक्त सम्भवतः रामायण एवं आचार-सिद्धान्त सम्बन्धी पञ्चमीचरिउ नामक ग्रन्थों की भी रचनाएँ की होंगी। यद्यपि कुछ को छोड़कर बाकी के पद्यों को चउमुह कृत नहीं बताया गया है। किन्तु चउमुह कृत पद्यों के बाद उसी क्रम में ये पद्य उपलब्ध होते है । अतः प्रसंग-प्राप्त होने के कारण हमारा अनुमान है कि इन पद्यों के साय चउमुह का नाम अंकित न होने पर भी जब तक कोई सबल विरोधी प्रमाण न मिल जाय, तब तक उन्हें चउमुहकृत मान लेने में आपत्ति नहीं होनी चाहिए। इस प्रकार कुल मिलाकर चहुमुह के २४ पद्य माने जा सकते हैं महाभारत सम्बन्धी ११, रामायण सम्बन्धी १२ एवं अन्य १ पद्य, जो किसी ग्रन्थ के मंगलाचरण से सम्बद्ध होना चाहिए। द्रोण-इस कवि का उल्लेख भी त्रिभुवन-स्वयम्भू ने "रिट्ठणेमिचरिउ की अन्त्यप्रशस्ति में किया है । इसके बाद महाकवि पुष्पदन्त , धवल, लक्ष्मण, धनपाल' एवं रइधू आदि कवियों ने बड़े आदर से चउमुह के साथ उसका स्मरण किया है। किन्तु इन १. स्वयम्भूछन्दस्-पद्य सं० ४.२।१; ४।२।२, ४॥२॥३; ६१४४।१; ६७५।१; ६१८७११, ६।१२२।१। २. वही-६६३७११; ६।५४।१; ६।५६।१; ६।६३।१; ६६५।१; ६६८।१ । ३. पउमचरिउ-अन्त्यप्रशस्ति । ४. महापुराण १।९।५ । ५. हरिवंसपुराण (अप्रकाशित) ११३।१८। ६. जिणादन्तचरिउ (अप्रकाशित) १।५।२ । ७. बाहुबलिचरिउ (अप्रकाशित) १।८।२१ । ८. सम्मइजिणचरिउ (अप्रकाशित) १।९।२३-२४ । २१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522606
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNand Kishor Prasad
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1990
Total Pages290
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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