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________________ 160 Vaishali Institute Research Bulletin No. À शाकटायन, एवं पाल्यकोत्ति से अमोघवर्ष का घनिष्ठ सम्बन्ध था। उनके संसर्ग से स्वयं उसमें भी काव्य प्रतिभा का स्फुरण हुआ और उसने भी 'कविराजमार्ग' एवं 'प्रश्नोत्तर-रत्नमालिका' ग्रन्थ लिखकर सभी को आश्चर्यचकित कर दिया।' शिलालेख सं० ३६० (सन् १९८० ई०) में कहा गया है कि "पण्डिताचार्य चारुकीत्ति की वाग्मिता, विद्वता एवं यश इतना प्रशस्त था कि उनके साथ शास्त्रार्थ में चार्वाकों को अपना अभिमान, सांख्य को अपनी उपाधियाँ, भट्ट को अपने समस्त साधन एवं कणाद को अपना हठ छोड़ना पड़ा।" ऐहोले के सुप्रसिद्ध संस्कृत जैन शिलालेख ने यदि महाकवि कालिदास एवं भारवि की पूर्वापरता सिद्ध न की होती, तो वह तर्क-वितर्क का विषय ही बना रहता। प्राकृत के कक्कुकशिलालेख ने भी प्रतिहार-वंश की उत्पत्ति तथा सार्वजनिक बाजार की स्थापना की चर्चा कर ऐतिहासिक महत्व का कार्य किया है । साहित्यिक इतिहास की दृष्टि से भी मध्यकालीन जैन साहित्य का विशेष महत्व है। संस्कृत एवं अपभ्रंश साहित्य में विविध विषयों के शताधिक ऐसे कवि एवं उनको कृतियों के उल्लेख मिलते हैं, जो आज अज्ञात एवं अनुपलब्ध है। यहां उनकी सविवरण पूर्ण-सूची प्रस्तुत कर पाना तो सम्भव नहीं, किन्तु कुछ ऐसे कवियों का निर्देश अवश्य करना चाहता हूँ, जिनकी रचनाएँ मध्यकाल में लोक-मानस को अनुप्राणित करती रही हैं और जिनकी पुष्टि संस्कृत एवं प्राकृत साहित्य के प्रासांगिक सन्दर्भो से होती है। ऐसे कवियों में ईसान, चउमुह अथवा चउराणण, दोणु, गोइन्द, जीवएव, अणुराय, सुग्गीव, वोरवन्दक, गउडकवि, पल्लकित्ति, मल्लसेण, णील आदि के नाम प्रमुख हैं। इनमें से कुछ कवियों के इतिवृत्त पर संक्षिप्त प्रकाश डालने का प्रयत्न किया जा रहा है उमुह-चउमुह का सर्वप्रथम उल्लेख 'स्वयम्भूछन्दस्' नामक ग्रन्थ में मिलता है । उसके लेखक महाकवि स्वयम्भू ने अपने छन्द-प्रकरणों में उदाहरण देने हेतु चउमुह के कुछ पद्यों को उद्धृत किया है। इन पद्यों का वर्ण्य-विषय देखने से विदित होता है कि कवि ने महाभारत सम्बन्धी कोई अपभ्रंश-ग्रन्थ लिखा था। स्वयम्भू के बाद उनके पुत्र त्रिभुवन स्वयम्भू ने चउराणण" के नाम से चउमुह का उल्लेख किया है और उसके परिचय में दो सूचनाएँ दो हैं(१) "चउराणण ने दुवई एवं ध्रुवकों से जड़ा हुआ पद्धड़िया-छन्द अर्पित किया ।" कवि ने १. विशेष के लिए देखें, वैशाली इंस्टीटयूट बुलैटिन सं० ३, पृ० २।१४४ । २. दे० श्रवणवेलगोला के जैन-शिलालेख, पृ० ५ । ३. बीजापुर (कर्नाटक) जिले के हुँगुड तालुका के ऐहोले के मेगुटी नाम के प्राचीन जैन मन्दिर में उपलब्ध शिलालेख । ४. जोधपुर के घटयाला नाम के ग्राम के जैन-मन्दिर में उपलब्ध । ५. रिटणेमि चरिउ (अप्रकाशित), अन्त्यप्रशस्ति । ६. पउमचरिउ (स्वयम्भू)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522606
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNand Kishor Prasad
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1990
Total Pages290
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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