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________________ मध्यकालीन जैन साहित्य का ऐतिहासिक मूल्यांकन 157 उसी कीत्ति स्तम्भ के समीप कवि ने दिल्ली के देश-विदेश में विख्यात महान् सार्थवाह नट्टल साहू द्वारा निर्मित विशाल आदिनाथ का मन्दिर भी देखा था, जिस पर पंचरंगी झंडा फहरा रहा था ।' यह घटना १२वीं सदी के अन्तिम चरण की है ।२।। विबुध श्रीधर द्वारा वणित उक्त दोनों वास्तुकला के अमरचिह्न नष्ट-भ्रष्ट हो गये और परवर्ती कालों में मानव-स्मृति से भी ओझल होते गये। इतिहास-मर्मज्ञ पं० हरिहरनिवास द्विवेदी ने विबुध श्रीधर के उक्त सन्दर्भो का अन्य सन्दर्भो के आलोक में गम्भीर विश्लेषण कर यह सिद्ध किया है कि दिल्ली स्थित वर्तमान गगनचुम्बी कुतुबमीनार ही अनंगपाल तोमर द्वारा निर्मित कीर्तिस्तम्भ है, जिसमें बाद में परिवर्तनकर उसका नया नामकरण कुतुबमीनार के रूप में किया गया। उसमें नट्टलसाहू द्वारा निर्मित आदिनाथ मन्दिर को तोड़कर उसकी अधिकांश सामग्री कुतुबमीनार में लगा दी गई। गोपाचल-शाखा के तोमरवंशी राजाओं का विस्तृत वर्णन महाकवि रइधू ने अपनी ग्रन्थ-प्रशस्तियों में किया है। उसके अनुसार राजा डूंगरसिंह अपनी वंश-परम्परा में चतुर्थ राजा थे। उनके पिता का नाम राजा गणेशसिंह तथा पत्नी का नाम चन्दादेवी था और पुत्र का नाम था राजा कीर्तिसिंह। रइधू ने डूंगरसिंह के संघर्ष, पुरुषार्थ एवं पराक्रम का प्रचुर वर्णन किया है। साथ हो, उसके काल में साहित्य, संस्कृति, कला एवं सर्वधर्म-समन्वय की प्रवृति पर भी अच्छा प्रकाश डाला है। इतिहास भले ही उसके विषय में मौन रहे, किन्तु महाकवि रइधू के उल्लेखों से से यह स्पष्ट है कि उत्तर भारत में उत्तर-मध्यकालीन इतिहास में ऐसा सशक्त एवं आदर्श राजा दूसरा नहीं हुआ। डूंगरसिंह एवं उनके पुत्र राजा कीतिसिंह के राज्यकाल में जैनियों का बड़ा सम्मान था। उनके समय में राज्य के प्रधान मन्त्री, अर्थमन्त्री एवं राज्य के अन्य अनेक पदों पर जैनियों को प्रतिष्ठित किया गया था। ऐसे लोगों में कमलसिंह संघवी, हरसीसाहू, खेऊसाहू, साहूक्षेमसी, जुगराज'' आदि प्रमुख है । खेऊसाहू का विदेशों से व्यापारिक सम्बन्ध था । डॉ. हेमचन्द्र रायचौधुरी के अनुसार उक्त दोनों राजाओं के राज्यकाल में लगभग ३३ वर्षों १. वही। २. वड्डमाणचरिउ, विबुधश्रीधर, अन्त्यप्रशस्ति । ३. दे० कीतिस्तम्भ वनाम कुतुबमीनार, हरिहरनिवास द्विवेदी, ग्वालियर १९८३ ई० परिच्छेद-११ । ४. रइधू ग्रन्थावली प्र० भा०, धण्णकुमार चरिउ ११३ घन्ता । ५. रहधूकृत मेहेसरचरिउ (अप्रकाशित) ११५।४ । ६. रइधूकृत सिरिवालचरिउ (अप्रकाशित) १०।२३।५ । ७-१२. विशेष के लिए देखिए-रइधू साहित्य का आलोचनात्मक परिशीलन (आश्रयदाता प्रकरण)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522606
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNand Kishor Prasad
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1990
Total Pages290
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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