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________________ 156 Vaishali Institute Research Bulletin No. 7 महाकवि अमरकीति ने अपने 'छक्कम्मोवएस' नामक ग्रन्थ की प्रशस्ति में लिखा है कि उसने उसकी परिसमाप्ति वि० सं०. १२४७ के भाद्रपद मास की शुक्ल चतुर्दशी के दिन चालुक्यवंशी राजा वंदिग्ग के पुत्र कण्ह अथवा कृष्णराज के राज्यकाल में की थी। कुछ लोग उक्त वंदिग्ग का नाम आधुनिक लोकप्रचलित इतिहास में नहीं पाते । अतः भ्रम में पड़ जाते हैं कि यह वंदिग्ग एवं उनका पुत्र कृष्ण कौन है ? किन्तु पं. नाथूराम जी प्रेमी के अनुसार महाकवि पुष्पदन्त के महापुराण की प्रशस्ति से उक्त भ्रम का निराकरण हो जाता है । पुष्पदन्त ने कृष्णराज (तृतीय) के तीन नाम बतलाए है-(१) तुडिगु, (२) बल्लभनरेन्द्र अथवा बल्लभराय, एवं (३) शुभतुंगदेव अथवा शुभतुंगाचार्य । वस्तुतः तथ्य यह है कि राष्ट्रकूट एवं चालुक्य राजाओं के घरेलू नाम एवं शासनकालीन नाम पृथक्-पृथक् रहे हैं । वन्दिग, राजा अमोघ-वर्ष का घरेलू नाम था । उसके पुत्र कण्ह अथवा कृष्ण का घरेलू नाम था तुडिगु । वन्दिग्ग एवं कृष्ण तृतीय का पिता-पुत्रत्व सम्बन्ध सोमदेवकृत नीतिवाक्यामृत की प्रशस्ति से सिद्ध है। मध्यकालीन भारतीय इतिहास में तोमरवंशी राजाओं की चर्चा दुर्लभ ही है, जब कि दिल्ली एवं मालवा के सर्वांगीण विकास में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा । अपभ्रंशकवियों ने अपनी ग्रन्थ-प्रशस्तियों में उनके कार्यकलापों की विस्तृत चर्चा की है। दिल्ली शाखा के तोमरवंशी राजा अनंगपाल का नाम अज्ञान के कुहासे में विलीन होता जा रहा था। किन्तु हरियाणा के अपभ्रंश-कवियों ने अपनी ग्रन्थ-प्रशस्तियों में उनके कार्यकलापों की विस्तृत चर्चा की है । दिल्ली शाखा के तोमरवंशी राजा अनंगपाल का नाम अज्ञान के कुहासे में विलीन होता जा रहा था । किन्तु हरियाणा के अपभ्रंश कवि विबुधश्रीधर ने यमुना नदी पारकर जब योगिनीपुर (वर्तमान दिल्ली) की यात्रा की और वहाँ का भ्रमण किया, तो उसके सौन्दर्य से ही वे मन्त्रमुग्ध हो उठे। उसका आँखों देखा वर्णन कवि ने अपने पासणाहचरिउ' में किया है। उसने लिखा है कि वहाँ उसने एक गगनचुम्बी कीर्तिस्तम्भ देखा, जो राजा अनंगपाल तोमर का बनवाया हुआ था। उसे उसने अपनी विजयों की स्मृति को स्थायी बनाए रखने हेतु निर्मित कराया था। १. दे० छक्कम्मोवएस-आद्यप्रशस्ति । २. दे० पुष्पदन्तकृत महापुराण, प्र० भा० बम्बई, भूमिका पृ० २९ । ३. जैन साहित्य और इतिहास, नाथूराम प्रेमी, बम्बई, १९५६ ई०, पृ० २४३ । ४. दे० यशस्तिलकचम्पू महाकाव्य, सोमदेव, वाराणसी, १९६०, प्रस्तावना, पृ०२० । ५. अप्रकाशित आद्यप्रशस्ति में यह वर्णन उपलब्ध है। ६. वही । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522606
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNand Kishor Prasad
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1990
Total Pages290
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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