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________________ राजप्रश्नीय एवं पायासिराजञसुत्त : तुलनात्मक समीक्षा डॉ० कोमलचन्द्र जैन* राजप्रश्नीय जैनागमों में समाविष्ट १२ उपांगों में दूसरा उपांग है और पायासिराजनसुत्त बौद्ध आगम के रूप में स्वीकृत त्रिपिटक के अन्तर्गत सुत्तपिटक के दीघनिकाय का २३वाँ सुत्त है।' उक्त दोनों सुत्तों की तुलनात्मक समीक्षा करने के पूर्व यह आवश्यक है कि बौद्ध और जैन आगमों की पूर्वापरता पर कुछ कह दिया जाय । ___भगवान् महावीर एवं भगवान् बुद्ध दोनों ही महापुरुष समकालीन थे। इन्होंने अपने उपदेश लौकिक भाषा में दिये थे । परम्परा के अनुसार भगवान् महावीर तथा भगवान् बद्ध का निर्वाण, क्रमशः ईसापूर्व ५२७ तथा ४८५ के लगभग हुआ था । निर्वाण के अनन्तर उनके अनुयायियों के अपने-अपने शास्ता के उपदेशों की सुरक्षा के लिए पूरी निष्ठा से कार्य किया था। मौखिक परम्परा में सुरक्षित बुद्ध के वचनों को ईसा के लगभग तथा महावीर की वाणी को ईसा की पांचवीं सदी में अन्तिम रूप देकर उन्हें लिपिबद्ध कर लिया गया और यही बौद्ध और जैन आगमों के नाम से विख्यात है। चूंकि उक्त बौद्धागम एवं जैनागम का मूलस्रोत क्रमशः भगवाम् बुद्ध एवं भगवान् महावीर के धर्मोपदेश थे और वे दोनों ही महापुरुष श्रमण परम्परा के पोषक थे, अतः बौद्ध और जैन आगमों में निहित श्रमण परम्परा के आदर्श लगभग एक जैसे है। उदाहरणस्वरूप हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, एवं परिग्रह से विरति, सभी प्राणियों में समता का भाव, जन्मना जातिवाद का खण्डन, ब्राह्मणों के यज्ञों में व्याप्त दोषपूर्ण आडम्बरों का प्रतिवाद आदि दोनों ही आगमों में दृष्टिगोचर होते है । संक्षेप में कहा जा सकता है कि इन आगमों में मानव के उन गुणों का निरूपण है जो उसके वैयक्तिक स्वार्थ से भिन्न है। ___ इतना सब होने पर भी दोनों आगमों के लेखन कालों के मध्य विद्यमान ५०० वर्षों के अन्तराल ने इनमें उल्लेखनीय वैषम्य उत्पन्न कर दिया है। इस वैषम्य का अनुभव बौद्ध और जैन आगमों में विद्यमान समाज सम्बन्धी चित्रणों से सहज ही में किया जा सकता है । उदाहरणस्वरूप बौद्धागमों से ज्ञात होता है कि पुत्री का जन्म सामरिक वातावरण के कारण * काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी। १. देखिये दीघनिकायपालि (नालन्दा) खण्ड २, पृ० २३६-२६१ । २. देखिये हिस्ट्री आफ इण्डियन लिटरेचर (विन्टरनित्स), खण्ड २, पृ० १ तथा ६१४ । ३. वही, पृ० ८ तथा ४३२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522606
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNand Kishor Prasad
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1990
Total Pages290
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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