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________________ 139 शासन-मालिन्य यति के प्रति भक्ति पुण्य फल बन्ध तीर्थकृत दान हरिभद्रसूरिकृत अष्टक-प्रकरण : एक मूल्यांकन धनयज्ञ सेठ एवं उसके धनपाल और वसुपाल पुत्रों की कथा महावीर के जन्म की कथा महावीर के देवदूष्य महादान की कथा १२ म्लेच्छ द्वारा नगर-वर्णन में असमर्थता का दृष्टान्त' ११ दान फल मोक्ष-निरूपण मोक्ष-स्वरूप में असमर्थता ५. अष्टक-प्रकरण की टीका में कई परिभाषाएँ बड़ी सटीक है । प्राणी को उसके ज्ञान से, चित्त से, क्रिया से और उसके प्राणों से वियुक्त करना हिंसा कही गयी है।२।। ६. टीका में व्याख्या करते समय कुछ अतिरिक्त जानकारी भी दी गई है । यथा-१२वें वाद अष्टक में कहा गया है कि धनवान, सजा, शक्तिशाली प्रतिपक्ष, गुरू, नीच व्यक्ति एवं तपस्वी के साथ वाद-विवाद नहीं करना चाहिये । मद्यपान-निषेध के प्रसंग में कहा गया है कि मद्यपान से निम्न १६ दोष है-१-विरूपता, २-रोगसमूह, ३-स्वजनों से अपमान, ४-कार्यहानि, ५-विद्वेष, ६-ज्ञान-हानि, ७-स्मृतिहरण, ८-बुद्धि-हरण, ९-गुणों का नाश, १०-कठोरता में वृद्धि, ११-नीच-सेवा १२-कुल की हानि, १३-बल-हानि, १४-धर्म-हानि, १५-अर्थ-हानि एवं १६-काम-पुरुषार्थ की हानि । शासन-मालिन्य के प्रसंग में बताया गया है कि इन आठ लोगों से धर्म की प्रभावना हो सकती है- १-प्रवचनकार, २-कथाकार, ३-ताकिक (वादी), ४-नैमित्तिक, ५-तपस्वी, ६-विद्वान, ७-सिद्ध पुरुष एवं ८-कवि । इस तरह अष्टक-प्रकरण आचार्य हरिभद्रसूरि की ऐसी रचना है, जो सामान्य धार्मिक जन के लिए भी उपयोगी है एवं विद्वद्जनों के लिये भी। संक्षेपवृत्तिवाला व्यक्ति प्रकरण की इतनी बातों को ही जीवन में अपना कर अपना कल्याण कर सकता है। विशेष ज्ञान वाले व्यक्ति इस ग्रन्थ की टीका से अपना ज्ञानवर्द्धन कर सकते हैं। इस ग्रन्थ का टीका सहित हिन्दी व अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित किया जाना चाहिये । १. कथा-क्रम सन्दर्भ-(१) टीका पृ० ३१, (२) वही, (३) पृ० ५२, (४) पु० ६१, (५) पृ० ७४ (६) पृ० ९९-१००, (७) पृ० १४०, (८) पृ० १५१, (९) पृ० १६४, (१०) पृ० १७२, (११) पृ० १८४, एवं (१२) पृ० २१० । २. टीका, पृ० २० । ३. टीका, पृ० १३९ । ४. पावयणी-धम्मकही वादी नेमित्तओ तवस्सी य । विज्जा, सिद्धो य कवी अठेव पमावगा भणिया ॥ टीका पृ० १५९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522606
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNand Kishor Prasad
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1990
Total Pages290
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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