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________________ 138 Vaishali Institute Research Bulletin No. 7 ___ इस श्लोक में प्रयुक्त "विरहात्" शब्द के श्लेष द्वारा कवि ने अपनी "विरहांक" उपाधि की ओर भी संकेत कर दिया है। यद्यपि जिनेश्वरसूरि की मूल टीका में इस श्लोक के न पाये जाने का उल्लेख अभयदेवसूरि ने किया है । इससे हरिभद्र की रचनाओं में अष्टकप्रकरण को जोड़ने में प्रश्नचिन्ह तो लगता है। टीका का वैशिष्टय ___ अष्टक प्रकरण पर जो जिनेश्वरसूरि की संस्कृत टीका है, वह कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण है । हरिभद्रसूरि के इस २५६ श्लोकों वाले ग्रन्थ पर जिनेश्वर सूरि ने जो टीका लिखी है वह ३३ सौ श्लोक-प्रमाण है। श्री विजयोदयसूरि ने इसका सम्पादन कर २११ पृष्ठों में पत्राकार में इसे प्रकाशित किया है। इस टीका में जिनेश्वरसूरि का पाण्डित्य स्पष्ट झलकता है। यह टीका स्वयं स्वतन्त्र अध्ययन का विषय है। इसकी कतिपय विशेषताओं का यहाँ ध्यातव्य हैं। १. इस टीका में दशवेंकालिक, आवश्यकनियुक्ति, व्यवहारचूर्णि, उपदेशमाला, ऋग्वेद, महाभारत आदि ग्रन्थों के नाम देकर उनसे उद्धरण दिये गये है। किन्तु बिना सन्दर्भ दिये कई महत्वपूर्ण उद्धरण-अंश भी इसमें उपलब्ध हैं । २. टीकाकार ने अपनी व्याख्या के समर्थन में १५२ प्राकृत गाथाएँ उद्धृत की हैं। इनके स्रोतों को खोजने से कई महत्वपूर्ण सूचनाएँ प्राप्त हो सकती हैं।' ३. इन सब प्राकृत गाथाओं एवं गद्यांशों का संस्कृत अनुवाद अभयदेवसूरि ने प्रस्तुत किया है । यह सामग्री संस्कृत-छाया के अध्ययन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है । ४. इस टीका में विभिन्न प्रसंगों में निम्नांकित दृष्टान्त-कथाओं का संकेत किया गया है। कथा साहित्य की दृष्टि से यह सामग्री नयी सूचनाएँ दे सकती है द्रष्टान्त-कथा-सूची नाम अष्टक क्रम द्रष्टान्त-कथा उद्देश्य स्नान अष्टक संकाश श्रावक चैत्यद्रव्य सेवन का फल दुर्गति नारी अंधे-लंगड़े का दृष्टान्त मिथ्या अष्टक सारूपिक नामक सिद्धपुत्र की कथा भिक्षा का दृष्टान्त प्रत्याख्यान अष्टक अंगारमर्दक द्रव्याचार्य अभव्य दृष्टान्त तप अष्टक रत्न-वणिक का दृष्टान्त मद्यपान दूषण कोई एक ऋषि की कथा मद्यपान-दूषण हेतु सूक्ष्मबुद्धि-आश्रय ८ सुग्रीव एवं राम की कथा सूक्ष्मबुद्धि प्रयोग १. सम्मद्दिष्ट्ठिस्स वि अविरयस्स न तवो महागुणो होई । होई हु हेत्थिण्हाणं, तुंदच्छिययं व तं तस्स ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522606
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNand Kishor Prasad
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1990
Total Pages290
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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