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जैन सरस्वती की एक अनुपम प्रतिमा का कलात्मक सौन्दर्य
डा० फूलचन्द जैन प्रेमी* ___ लाडनू नगर (जिला-नागौर, राजस्थान) का दिगम्बर जैन बड़ा मंदिर मूर्तिकला की दृष्टि से काफी समृद्ध एवं प्राचीन मन्दिर है। इसमें अनेक तीर्थंकर प्रतिमायें, देवी प्रतिमायें तथा तोरणद्वार आदि ऐसे उत्कृष्ट उदाहरण हैं, जिन्हें कला जगत् में जितनी प्रसिद्धि मिलनी चाहिये थी, नहीं मिल सकी । इस मंदिर की जैन सरस्वतीमूर्ति को ही लें, जो कलात्मकता, भव्यता एवं सौम्यता आदि गुणों में अद्वितीय मूर्ति कही जा सकती है, किन्तु इसके विषय में लोगों को बहुत ही कम जनकारी है। मूर्तिकला के क्षेत्र में जैन सरस्वती की विभिन्न लक्षणों एवं मुद्राओं में प्राचीन से प्राचीन और अर्वाचीन से अर्वाचीन मूर्तियों के उदाहरण हैं। किन्तु अभी तक पल्लु (बीकानेर) से प्राप्त सरस्वती को दोनों प्रतिमायें ही प्रसिद्ध हैं। इनमें से एक बीकानेर के संग्रहालय में तथा दूसरी राष्ट्रीय संग्रहालय, दिल्ली में संग्रहीत है । किन्तु लाडन के इस मंदिर में प्रतिष्ठित जैनसरस्वती मूर्ति की भावपूर्ण मोहक मुखमुद्रा एवं कलाकार की अद्भुत कला का संयोजन देखकर दर्शक अपने आपको धन्य मान लेता है । दर्शक के मुख से यही वाक्य निकलता है कि यदि इस मूर्ति को प्रचारित किया जाता तो इसकी गणना उत्कृष्ट कला के अन्यतम उदाहरणों के रूप में होती।
भारतीय कला धार्मिकता से ओतप्रोत है। उसमें आध्यात्मिकता को गहरी छाप है। श्रेष्ठ मूतियों के जितने उदाहरण देखते हैं, सभी में एक पवित्र लावण्य और निर्मल धारा प्रवाहित होतो दिखाई देती है। यही कारण है कि जब कभी भारतीय शिल्पकारों ने नारो को अपने शिल्प का विषय बनाया, तब अधिकतर उसे माँ के रूप में प्रदर्शित किया।
वस्तुतः भारतीय देवियों में सरस्वती को सदा माता का सच्चा स्वरूप प्रदान किया जाता है। जैनधर्म में जिनवाणी, वाग्देवी तथा श्रुतदेवता के रूप में सरस्वती की मान्यता प्राचीनकाल से ही प्रचलित है । आगमिक ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी के रूप में सरस्वती को उसका प्रतीक बनाया गया और उसकी उपासना प्रारम्भ हुई तथा पवित्र आगमिक ज्ञान को प्रतीकात्मक रूप देने के लिए ज्ञान (श्रुत) की देवी सरस्वती की प्रतिमा बनाई गई। ज्ञान की ज्योति सब ओर प्रकाश देती है अतः सरस्वती भी ज्ञान रूपी प्रकाश की देवी है। सरस्वती का श्वेत रूप जीवन की पवित्रता का द्योतक है।
आचार्य हेमचन्द्र ने सरस्वती के वाक्, ब्राह्मी, भारती, गौ, गी, वाणी, भाषा और श्रुतदेवी-ये नाम बताये हैं। इन नामों के अनुरूप गुणों का संयोजन करके मूर्तिकारों ने सर
* अध्यक्ष, जैन दर्शन विभाग, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी।
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