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सारनाथ की जैन प्रतिमाएँ
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है । इनका जन्मस्थान काम्पिल्यपुर' तथा निर्वाण स्थान सम्मेद शिखर है। मूर्ति पद्म पर कायोत्सर्ग मुद्रा में पीठिका पर निर्वस्त्र खड़े हैं एवं पीठिका पर लांछन उत्कीर्ण है। पाश्र्ववर्ती चामरधरों के अतिरिक्त अन्य कोई सहायक आकृति नहीं है । इस मूर्ति का प्रतिमा शास्त्रीय उल्लेख त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित मे मिलता है। इस काल की कुछ अन्य प्रतिमाओं में शान्तिनाथ एवं अजितनाथ की भी खण्डित प्रतिमाएँ प्राप्त है, किन्तु मूर्तियाँ इतनी खण्डित हो चुकी है कि उनके सम्बन्ध में प्रकाश डालना असम्भव है, वैसे शान्तिनाथ सोलहवें तीर्थकर हैं, जिनका लांछन मृग है, अजितनाथ द्वितीय तीर्थकर माने गये हैं, जिनका लांछन हाथी' है। इन प्रतिमाओं को दयाराम साहनी मात्र नाम से ही सम्बोधित किए हैं।
इस तरह से सारनाथ एवं उसके आस-पास की बिखरी हुई जैन मूर्तियों का भी उल्लेख किया गया है । सारनाथ के सिंहपुर के श्रेयांशनाथ की प्रतिमाओं का विधिवत् विवरण दिया गया है। इस मूर्ति के सम्बन्ध में विद्वानों ने भी अपनी सहमति दी है, जैन कला में इसका बहुत महत्व रखा गया है । विमलनाथ एवं उनके साथ और खण्डित जैन प्रतिमाओं के प्राप्त होने से ९ वीं-१० वीं शती ई० के धार्मिक प्रभाव स्पष्ट होता है कि मध्यकाल में भी इस धर्म की विशेष महत्ता रही होगी ।
१. घोष, भाग १, वही, पृष्ठ ६६; जोशी, नी० पु०, प्राचीन भारतीय मूर्ति विज्ञान, पृष्ठ
२१६-१७ । २. तिवारी मारुतिनन्द प्रसाद, जैन प्रतिमा विज्ञान, पृष्ठ १०६, चि० १८ । ३. चि० श० पु० च०, ४१३१४८ । ४. जोशी, नी० पु०, वही, पृष्ठ २१६-१७ । ५. साहनी, सारनाथ म्यूजियम केटलाग, पृष्ठ २३७ नं० जी०, ६१-६२ ।
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