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समराइच्चकहा में सन्दर्भित प्राचीन बिहार
21 जनों, साहित्यकारों एवं दार्शनिकों का तो वह गढ़ था ही, अटूट धन-सम्पदा के कारण वहाँ औत्कटिकों (रिश्वतखोरों अथवा दलालों), ग्रन्थिभेदकों (जेबकतरों), उचक्कों एवं तस्करों की भी कमी नहीं थी । किन्तु प्रशासनिक कठोरता के कारण वहाँ अपराध कर्म अधिक नहीं हो पाते थे।'
विविध तीथंकल्प के अनुसार दशवैकारिक सूत्र की रचना इसी भूमि पर हुई थी। कुमारनन्दि नामक एक स्वर्णकार ने चन्दन की एक कलापूर्ण जीवन्त स्वामी (भगवान् महावीर के दीक्षा लेने के पूर्व की मूर्ति) का निर्माण भी यहीं पर किया था।
कुणिक की मृत्यु के बाद उसके पुत्र उदायि ने चम्पा को अपनी राजधानी बनाया था । किन्तु आगे चलकर जब मगध की राजधानी पाटलिपुत्र बनी, तभी से चम्पा की अवनति का प्रारम्भ हो गया। मिथिला
उत्तर बिहार की तिरहुत डिवीजन का एक अंचल मिथिला के नाम से प्रसिद्ध है, जिसका प्रमुख नगर दरभंगा है। हरिभद्र ने बताया है कि वहाँ के एक मन्त्रिका ने अपनी मन्त्रशक्ति के प्रभाव से वहाँ के राजा की पटरानी का अपहरण कर लिया था । मन्त्र-तन्त्र के ये चमत्कार मिथिला में आजकल भी देखे जा सकते हैं । जिनप्रभ सूरि ने भी वहाँ के कुबेरयक्ष, भृकुटियक्ष, वैरुट्टादेवी तथा गान्धारी देवी की चर्चा की है तथा सूचित किया है, ये देवी-देवता अपनी शक्ति से वहाँ के निविण्ण साधकों पर आने वाले उपसर्गों से उनकी रक्षा किया करते थे।
महावीर के परिनिर्वाण के २२० वर्ष बाद अर्थात् ई० पू० ३०७ के पश्चात् मिथिला के लक्ष्मीगृह चैत्य में कौण्डिन्यगुप्त (आर्य महागिरि के शिष्य) का शिष्य आसमित्त अनुप्रवाद पूर्व (नामक पूर्व-साहित्य) "निपुणका' नामक वस्तु का अध्ययन कर वह श्रद्धा-विहीन हो गया था। प्रवचन स्थविरों द्वारा अनेकानेक युक्तियों से समझाकर मना करने पर भी वह उसूत्रप्ररूपणा कर चतुर्थ निह्नव हुआ।"
जैन-साहित्य में मिथिला का अपर नाम "जगइ''६ भी बतलाया गया है। यह नाम विशिष्ट है जो अन्यत्र नहीं मिलता।
जिनप्रभसूरि ने मिथिलावासियों के कदलीफल तथा दुग्धसिद्ध चिउड़े के प्रति आसक्ति की चर्चा की है। ये दोनों उत्पादन वहाँ की विशिष्ट वस्तुओं में प्रधान हैं। वहाँ आज भी उनकी वही स्थिति है। कोल्लाग सन्निवेश
इस नगर की पहचान वर्तमान वैशाली के कोल्हुआ" ग्राम से की गई है। जैनागम१. दे० उववाहय सुत्त का छठाँ सुत्त । २. दे० विविध विकल्प (नाट्य) पृ० १४८ । ३. दे० समरा भव. ८। ४. दे० विविध तीर्थकल्प (नाहटा) पृ० ७३ । ५. दे. वही पृ. ७२ ।
६-८. दे० वही। ९. दे० Antiquarian Remains in Bihar. Patil. page 34.
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