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________________ Vaishali Institute Resarch Bulletin No. 6 राजगृही का समीपवर्ती प्रदेश होने के कारण प्रतीत होता है कि यहाँ श्रमणों के बिहार निरन्तर होते रहते होंगे अतः उसका नाम "बिहार" भी प्रचलित हो गया । तत्पश्चात् १६वीं१७वीं सदी में शाह शरीकुद्दीन नामक एक मुस्लिम सन्त के नाम पर उसका नाम बिहारशरीफ पड़ गया जो आज भी इसी नाम से जाना जाता है । चम्पा 20 वर्तमान भागलपुर के एक उपनगर - चम्पा नगर से इस स्थल की पहचान को गई है । चम्पक वृक्षों की प्रचुरता के कारण ही सम्भवतः इस नगर का उक्त नामकरण हुआ होगा । इसका दूसरा नाम मालिनी भी मिलता है। जैन साहित्य में उसे वासुपूज्य स्वामी की निर्वाणभूमि के कारण सिद्धक्षेत्र की कोटि में प्रतिष्ठित किया गया है। व्यापारिक दृष्टि से भी उसे भारत के प्रमुख व्यापारिक केन्द्रों में परिगणित किया गया है । हरिभद्र ने उसे सार्थवाहों के गढ़ के रूप चित्रित किया है तथा वहाँ के नन्द नामक एक समृद्ध सार्थवाह की चर्चा की है ।" कोटिभट श्रीपाल चम्पानरेश था, किन्तु कुष्ठ रोग से पीड़ित होने के कारण वह उज्जयिनी चला गया । वहाँ से स्वास्थ्यलाभ कर वह जलमार्ग से भृगुकच्छ पहुँचा तथा समुद्री मार्ग से वह हंसद्वीप एवं रत्नद्वीप चला गया । " श्रीपाल का यह आख्यान वैदेशिक व्यापारपरम्परा एवं संस्कृति की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है । इसे चम्पा का सांस्कृतिक दूत माना जा सकता है | स्थल मार्ग से चम्पा का व्यापारिक सम्बन्ध मिथिला, अहिच्छत्रा एवं पिहुंड ( वर्तमान चिवकाकोल एवं कलिंगपट्टे) से था । चम्पा नगरी में माप-तौल के प्रमाण सम्भवतः मगधदेश से ग्रहण किए जाने के कारण वे “मगधप्रस्थक’६ के नाम से प्रसिद्ध थे, जिनके नाम एवं प्रमाण निम्न प्रकार हैं २ असई (असीत ) २ सई [ लगभग ३०० ग्राम ] ६०० ४ सेइया ४ कुलओ ४ पत्थओ = १ पसई (प्रसृति) = १ सेइया (सेतिका) = १ कुलओ (कुलवः ) = १ पत्थवो (प्रस्थकः ) = १ आडय (आटकः ) ४ आडय = १ द्रोण (द्रोणः ) १६० किलो 77 गमनागमन के कारण बड़ी चहल-पहल चम्पा नगरी में देश-विदेश के सार्थवाहों के रहती थी । आगम-साहित्य में इसका बड़ा ही व्यवस्थित एवं विस्तृत वर्णन मिलता है | साधु 31 Jain Education International "" ५. दे० सिखालका ५।२१-२४ । ६. दे० श्रमण साहित्य में वर्णित बिहार की कुछ जैन तीर्थ-भूमियाँ For Private & Personal Use Only " "" "" २३ किलो १. दे० वही० पृ० ४५ । २. दे० समरा २।१०६ । ३. दे० हरिभद्र के कथा सा० का भा० परि० ( ने० बं० शा० ) पृ० ३५६ । ४. दे० समरा० २।१०६ । १० किलो ४० किलो (लेखक डे० राजाराम जैन ) पू० ६३ । www.jainelibrary.org
SR No.522605
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorL C Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1988
Total Pages312
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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