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________________ महाकवि विबुध श्रीधर एवं उनकी अप्रकाशित रचना "पासणाहचरिउ " पतला बार-बार [बारम्बार ३२८|१], हल्ला [शोरगुल ४|१८१४ ], फाड़ना [४/९/१], थोड़ा [१०/५1३], अज्जकल्ल [ १०1१४|७ ], डमरू [ ३|१०|११, ३।११।५], [१|१३|१०], हौंले - हौंले [ धीरे-धीरे ३।१७।२], चप्प [ चाँपना ५७८ ], चाँपना [ ७|११|४], चुल्ली [चूल्हा ४|१|४], लक्कड़ [६|८|१२], पण्ही [ जूता ४ ९ ४ ], कुमलाना [ मुरझाना ३|१८|८ ], खुरुप्प [ खुरपा ४।१९।१३, ५|११|९] धोवन [धौन ३|१८/२], लट्ठी [लाठी ३|११|४] मुट्ठि | ३|११|४], घट्ट [ मोड़ ३|६| १२], चिंध [ धज्जी ४।९।१], तोड़ [ तोड़ना ४९८ ], धुत्त [ नशे में चूर ३|१३|२], चाजु [ आश्चर्य १।१३।९], अंधार [ अन्धेरा ३|१९|७ ], रेल्ल [धक्का-मुक्की ७|१३|१४], पेल्ल [ ३|८|४] बोलाविय [बुलाना ३२८|४], उट्टिउ [उठा ३८ १० ], झाडंत [ झाड़कर ७७९८ ], ढुक्क [ ढूंकना झाँकना ३।१७ ११, ४/१९/७ ], बुड्ढ [डूबना ३|१८|२], पाडंत [ ७९८ ], टा ंत [टालना ७१९१९], कड्ढ [ निकालना ४ २०१८ ], चिक्कार [ध्वन्यात्मक ५/१/५, ५।३।१४] । उपर्युक्त शब्दावली में अधिकांश शब्द हरयाणवी, राजस्थानी, बुन्देली एवं बघेली में आज भी हूबहू उसी प्रकार यत्किञ्चित् हेर-फेर के साथ प्रयुक्त होते हैं । 15 कवि श्रीधर अपभ्रंश के साथ-साथ संस्कृत भाषा के भी समानाधिकारी विद्वान् थे, यह उनकी अत्यन्त प्रशस्ति में लिखित संस्कृत श्लोकों से स्पष्ट ज्ञात होता है । कवि ने शार्दूल विक्रीडित, वसन्ततिलका एवं आर्याछन्दों में अपने आश्रयदाता नट्टल साहू को आशीर्वाद देते हुए कवि लिखता है - पश्चाद्बभूव शशिमण्डलभासमानः ख्यातः क्षितीश्वरजनादपि लब्धमानः । सद्दर्शनामृत - रसायन-पानपुष्टः श्रीनट्टल: शुभमना क्षपितारिदुष्टः उक्त सन्दर्भ सामग्रियों के आधार पर 'पासणाहचरिउ' अपभ्रंश - साहित्य की एक महनीय कृति सिद्ध होती है । स्थानाभाव के कारण न तो उक्त रचना के सर्वांगीण अध्ययन का अवसर मिल सका और जो सन्दर्भ सामग्री एकत्रित भी हुई, उसे भी अनेक सीमाओं में बँधे रहने के कारण पूरा विस्तार नहीं दिया जा सका, फिर भी जो संक्षिप्त अध्ययन यहाँ प्रस्तुत किया गया वह तो उसकी मात्र एक झाँकी ही है । वस्तुतः यह ग्रन्थ समकालीन विविध परि स्थितियों का एक सुन्दर प्रामाणिक - संग्रह है, जिसके विधिवत् अध्ययन से अनेक गूढ़ तथ्य प्रकाशित हो सकते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522605
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorL C Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1988
Total Pages312
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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