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________________ 14 Vaishali Institute Research Bulletin No. 6 रस-परिपाक पासणाहचरिउ का अंगीरस शान्त है, किन्तु शृंगार, वीर और रौद्र रसों का भी उसमें सम्यक् परिपाक हुआ है। कवि ने युद्ध के लिए प्रस्थान, संग्राम में चमचमाती तलवारें, लड़ते हुए वीरों की हुंकारों एवं योद्धाओं के शौर्य-वीर्य-वर्णनों आदि में वीर-रस की सुन्दर उद्भावना की है। पार्श्व कुमार को उसके पिता अश्वसेन जब युद्ध की भयंकरता समझाकर उन्हें युद्ध में न जाने की सलाह देते हैं तब पार्श्व को देखिए वे कितना वीरता-पूर्ण उत्तर देते हैं णहयलु तलि करेमि महि उप्परि वाउवि बंधमि जाइण चप्परि । पाय-पहारें गिरि-संचालमि णीरहि णीरु णिहिल पच्चालि । इंदोहौ इंद-धणुह उद्दालमि फणिरायहो सिरसेहरु टालमि । कालहो कालत्तणु दरिसावमि वणवइ धणःधारहिँ वरिसावमि । अग्गि कुमारहो तेउ णिवारमि वारुणु सुरु वरिसंतउ धामि । तेल्लोकुवि लीलए उच्चायमि करयल-जुअल रवि-ससि छायमि । तारा-णियरइँ गयणहो पाडमि कूरग्गह-मंडलु णिद्धाडमि । णहयरहो गमणु णिरुंभमि दिक्करडिहिं कुंभयलु णिसुभमि । विज्जाहर-पय-पूरु वहावमि सूलालकिय करु संतावमि । मयणहो माण मडप्फरु भंजमि भूअ-पिसाय-सहासइँ गंजमि । दीसउ मज्झु परक्कम वालहो उअरोहेण समुण्णय-भालहो । पास० ३०१५ इसी प्रकार राजा अरविन्द कमठ के दुराचार से खिन्न होकर क्रोधातुर हो जाता है और उसे नाना प्रकार के दुर्वचनों द्वारा अपमानित करता है; तब राजा के रौद्ररूप का कवि ने चित्रण कर रौद्र-रस की अच्छी उद्भावना की है। इसी प्रकार पार्श्व के वैराग्य के समय परिवार एवं पुरवासियों के वियोग के अवसर पर करुण-रस तथा जब पार्श्व वन में जाकर दीक्षित हो जाते हैं, उस सन्दर्भ में शान्त-रस का सुन्दर परिपाक हुआ है। शृङ्गार-रस के भी जहाँ-तहाँ उदाहरण मिलते हैं। कवि ने नगर, वन, पर्वत, नर एवं नारियों के सौन्दर्य का चित्रण किया है, किन्तु यह शृङ्गार रतिभाव को पुष्ट न कर विरक्ति को ही पुष्ट करता है। माता वामा देवी के सौन्दर्य का वर्णन इसके लिए सर्वश्रेष्ठ उदाहरण भाषा ____ पासणाहपरिउ एक प्रौढ़ अपभ्रंश रचना है, किन्तु उसमें उसने जहां-तहाँ अपभ्रंश के सरल शब्दों के प्रयोग तो किए ही हैं साथ ही उसने तत्कालीन लोक-प्रचलित कुछ ऐसे शब्दों के भी प्रयोग किए हैं जो आधुनिक बालियों के समकक्ष हैं। इनमें से कुछ शब्द तो आज भी हूबहू उसी रूप में प्रचलित हैं। इस प्रकार की शब्दावली से कवि की कविता में प्राणवत्ता, वर्णन-प्रसंगों में रोचकता एवं गतिशीलता आई है । उदाहरणार्थ कुछ शब्द यहाँ प्रस्तुत है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522605
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorL C Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1988
Total Pages312
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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