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________________ महाकवि विबुध श्रीधर एवं उनकी अप्रकाशित रचना "पासणाहचरिउ " 13 हो, क्योंकि साहू नट्टल का जिन-जिन देशों से सम्बन्ध बतलाया है, उस सूची में उक्त देशों का भी नाम आता है ।' मध्यकालीन भारत की आर्थिक एवं व्यापारिक दृष्टि से तो ये उल्लेख महत्त्वपूर्ण हैं ही, तत्कालीन कला, सामाजिक अभिरुचि एवं विविध-निर्माण सामग्री के उपलब्धिस्थलों की दृष्टि से भी उनका अपना विशेष महत्त्व है । पाश्व के साथ युद्ध में भाग लेने वाले नरेश (पार्श्व के ) काशी- देश की ओर से यवनराज के साथ लोहा लेने वाले राज्यों की सूची इस प्रकार है नेपाल, जालन्धर, कोरट्ठ एवं हम्मीर ( इन्होंने हाथियों के समान चिघाड़ते हुए ) । सिन्धु, सोन एवं पाञ्चाल - ( इन्होंने भीम के समान मुखवाले वाण छोड़ते हुए) । मालद, टक्क एवं खश - - ( इन्होंने दुर्दम यवनराज के साथ बिषम युद्ध करके) । प्रतीत होता है कि उक्त राज्यों ने अपना महासंघ बनाकर काशी - नरेश का साथ दिया होगा, जिसमें कर्नाटक, लाट, कोंकण, वराट, विकट, द्राविड, भृगुकच्छ, कच्छ, अतिविकट वत्स, डिंडीर, अत्यन्त दुःसाध्य विन्ध्य, कोशल, मरट्ठ एवं धृष्टसौराष्ट्र ने भी उक्त महासंघ का पूरा-पूरा साथ दिया इनकी सम्मिलित शक्ति ने यवनराज को बार-बार पीछे हटा दिया । इतने देशों के नामों के एक साथ उल्लेख अपना विशेष महत्त्व रखते हैं । यवनराज सुबुक्तगीन एवं उसके उत्तराधिकारियों तथा मुहम्मद गोरी के आक्रमणों से जब धन-जन, सामाजिक एवं राष्ट्रीय प्रतिष्ठा की हानि एवं देवालयों का विनाश किया जा रहा था, तब प्रतीत होता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा एवं समान - स्वार्थी को ध्यान में रखते हुए पड़ोसी एवं सुदूरवर्ती राज्यों ने उक्त यवनराजाओं के आक्रमणों के प्रतिरोध में सम्भवतः तोमरवंशी राजा अनंगपाल तृतीय के साथ अथवा कोई स्वतन्त्र महासंघ बनाया होगा । कवि ने सम्भवतः उसी की चर्चा पार्श्व एवं यवनराज के माध्यम से प्रस्तुत की है । यथार्थतः यह विषय बड़ा रोचक एवं गम्भीर शोध का विषय है, शोधकर्त्ताओं एवं इतिहासकारों को इस दिशा में अनुसन्धान करना चाहिए । मगध आदि के भी कवि ने प्रसंगवश हरयाणा, कुशस्थल, कालिन्दी, वाराणसी एवं सुन्दर वर्णन किए हैं तथा छोटी-छोटी भौगोलिक इकाइयों जैसे -- कर्वट, खेड, मडम्ब, आराम, द्रोणमुख, संवाहन, ग्राम, पट्टन, पुर, नगर आदि के भी उल्लेख किए हैं । पूर्वोक्त वर्णनों एवं इन उल्लेखों को देखकर यह स्पष्ट है कि कवि को मध्यकालीन भारत का आर्थिक, व्यापारिक, प्राकृतिक, मानवीय एवं राजनैतिक भूगोल का अच्छा ज्ञान था । कवि द्वारा प्रस्तुत यह सामग्री निश्चय ही तत्कालीन प्रामाणिक इतिहास तैयार करने में सहायक सिद्ध हो सकती है । १. पासणाह० २. वही ० ३।१२ । ३. वही ० ३।१२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522605
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorL C Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1988
Total Pages312
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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