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Vaishali Institute Research Bulletin No. 6
सूर
श्रीधर
अविरल धूलि धूसरिय गत्त २।१५।५
धूरि धूसरित गात १०।१००।३ श्रीधर
होहल्लरु (ध्वन्यात्मक) २।१४।८
हलरावै ( , ) १०।१२८१८ श्रीधर
खलियक्खर वयणिहि वज्जरंतु २।१४।३
बोलत श्याम तोतरी बतियाँ १०।१४७ श्रीधर
परिवारंगुलि लग्गउ सरंतु २०१४।४ सूर
हरिकौं लाइ अंगुरी चलन सिखावत १०।१२८८ इस प्रकार दोनों कवियों के वर्णनों की सदृशताओं को देखते हुए यदि संक्षेप में कहना चाहें तो कह सकते हैं कि श्रीधर का संक्षिप्त बाल-वर्णन सूरदास कृत कृष्ण की बाल-लीलाओं के वर्णन के रूप में पर्याप्त परिष्कृत एवं विकसित हुआ है । वनस्पति वर्णन
कवि श्रीधर की विविध वनस्पतियाँ भी कम आश्चर्यजनक नहीं। अटवी-वर्णन के प्रसंग में विविध प्रकार के वृक्ष, पौधे, लताएँ, जिमीकन्द आदि के वर्णनों में कवि ने मानों सारे प्रकृति-जगत् को साक्षात् उपस्थित कर दिया है। आयुर्वेद एवं वनस्पतिशास्त्र के इतिहास की दृष्टि से कवि की यह सामग्री बड़ी महत्त्वपूर्ण है। कवि द्वारा वर्णित वनस्पतियों का वर्गीकरण निम्न प्रकार हैशोभावृक्ष
हिंताल, तालूर, साल, तमाल, मालूर, घर, धम्मपा, वंस,
खदिर, तिलक, अगस्त्य, प्लक्ष, चन्दन । फलवृक्ष
आम्र, कदम्ब, नीवू, जम्वीर, जामुन, मातुलिंग, नारंगी, अरलू, कोरंटक, अंकोल्ल, फणिस, प्रियंगु, खजूर, तिन्दुक, कैंथ, ऊमर,
कठूमर, चिचिणी (चिलगोजा), नारिकेल, वट, सेंवल, ताल । पुष्पवृक्ष
चम्पक, कचनार, कणवीर (कनर), टउह, कउह, बबूल, जासवण्ण ( जाति ? ), शिरीष, पलाश, बकुल, मुचकुन्द, अर्क,
मधुवार । फल एवं पुष्पलताएँ-लवंग, पूगफल, विरिहिल्ल, सल्ल, केतकी, कुरव, कणिकार,
पाटलि, सिन्दूरी, द्राक्षा, पुनर्नवा, बाण, वोर, कच्चूर । कन्द
जिमीकन्द, पीलू, मदन एवं गंगेरी । विबुध श्रीघर के उक्त वनस्पति-वर्णन ने परवर्ती कवियों में सूफी कवि जायसी को सम्भवतः बहुत अधिक प्रभावित किया है। इस प्रसंग में जायसीकृत पद्मावत के सिंहलद्वीप १. पासणाह० ७।२। २. साहित्य सदन चिरगाँव झाँसी से प्रकाशित ।
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