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________________ 6 Vaishali Institute Research Bulletin No. 6 धारणा बनती जा रही है कि साहू नट्टल ने दिल्ली में पार्श्वनाथ का मन्दिर बनवाया था, जबकि वस्तुस्थिति उससे सर्वथा भिन्न है । यथार्थतः नट्टल ने दिल्ली में पार्श्वनाथ मन्दिर नहीं, आदिनाथ - जिन मन्दिर का निर्माण कराया था जैसाकि आद्य - प्रशस्ति में स्पष्ट उल्लेख मिलता है तित्थयरु पट्टावियउ जेण पढमउ को भणियइँ सरिसु तेण || (१।६।९) काराविवि णायेयहो णिकेउ पविइण्णु पंचवणं सुकेउ ॥ पणु पट्ट पविरइय जेम पासहो चरित्तु जइ पुणु वितेम || पास० १।९।१-२ अर्थात् आपने नामेय-निकेत [ आदिनाथ जिन मन्दिर ] का निर्माण कराकर उस पर पाँच वर्णवाले ध्वज को फहराया है । जिस प्रकार आपने उक्त मन्दिर का निर्माण कराकर उसकी प्रतिष्ठा कराई है, उसी प्रकार यदि मैं पार्श्वनाथचरित' की रचना भी करूँ तो आप उसकी भी उसी प्रकार प्रतिष्ठा कराइये” । उक्त वार्तालाप कवि श्रीधर एवं नट्टल साहू के बीच का है । उस कथन में "पार्श्वनाथचरित" नामक ग्रन्थ के निर्माण एवं उसके प्रतिष्ठित किए जाने की चर्चा तो अवश्य आई है किन्तु " पार्श्वनाथ मन्दिर" के निर्माण की कोई चर्चा नहीं और कुतुबुद्दीन ऐवक ने नट्टल साहू द्वारा निर्मित जिस विशाल जैन मन्दिर को ध्वस्त करके उस पर "कुव्वत - डल - इस्लाम" नाम की मस्जिद का निर्माण कराया था, वह पार्श्वनाथ का नहीं आदिनाथ का ही मन्दिर था' | "पार्श्वनाथ मन्दिर" के निर्माण कराए जाने के समर्थन में विद्वानों ने जो भी सन्दर्भ प्रस्तुत किए हैं, उनमें से किसी एक से भी उक्त तथ्य का समर्थन नहीं होता । प्रतीत होता है कि उप "पार्श्वचरित" को ही भूल से "पार्श्वनाथ मन्दिर' मान लिया गया, जो सर्वथा भ्रमात्मक है । इसी प्रकार साहू नट्टल को अल्हण साहू का पुत्र मान लिया गया, जो कि वास्तविक अथवा उसकी भाषा को न तथ्य के सर्वथा विपरीत है । मूलग्रन्थ का विधिवत् अध्ययन न करने समझने या आनुमानिक आधारों पर प्रायः ऐसी ही भ्रमपूर्ण बातें कह दी जाती हैं, जिनसे यथार्थ-तथ्यों का क्रम ही लड़खड़ा जाता है । पासणाह चरिउ की प्रशस्ति के अनुसार अल्हण एवं नट्टल दोनों वस्तुतः घनिष्ट मित्र तो थे किन्तु पिता पुत्र नहीं । अल्हण राज्यमन्त्री था, जबकि नट्टेल साहू दिल्ली नगर का एक सर्वश्रेष्ठ सार्थवाह, साहित्य-रसिक, उदार, दानी एवं कुशल राजनीतिज्ञ | वह अपने व्यापार के कारण अंग, बंग, कलिंग, गौड़, केरल, कर्नाटक, चोल, द्रविड, पांचाल, सिन्ध, खरा, मालवा, लाट, जट्ट, नेपाल, टक्क, कोंकण, महाराष्ट्र, भादानक, हरयाणा, मगध, गुर्जर एवं सौराष्ट्र जैसे देशों में प्रसिद्ध तथा वहाँ के राज दरबारों में उसे सम्मान प्राप्त था । कवि ने इसी नट्टल साहू के आश्रय में रहकर 'पासणाहचरिउ ' १. दे० दिल्ली जैन डाइरेक्टरी पृ० ४ । २. वही ० पृ० ४ । ३. तीर्थंकर महावीर एवं उनकी आचार्य परम्परा, पृ० ४।१३८ एवं जैन ग्र० प्रा० संग्रह द्वि० भा० भूमिका पृ० ८४ । ४. पास० अन्त्य प्रशस्ति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522605
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorL C Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1988
Total Pages312
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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