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________________ महाकवि विबुध श्रीधर एवं उनकी अप्रकाशित रचना "पासणाहचरिउ " की रचना की थी । इस रचना की आदि एवं अन्त की प्रशस्तियों एवं पुष्पिकाओं में साहू नट्टल के कृतित्व एवं व्यक्तित्व का अच्छा परिचय प्रस्तुत किया गया है । प्रन्थ-प्रमाण एवं विषय- वर्गीकरण प्रस्तुत 'पासणाहचरिउ' में कुल मिलाकर १२ सन्धियाँ एवं २४० कडवक हैं । कवि ने इसे २५०० ग्रन्थ- प्रमाण कहा है। उसके वण्यं विषय का वर्गीकरण निम्न प्रकार हैआद्य - प्रशस्ति के बाद वैजयन्त विमान से कनकप्रभदेव का चयकरवामा - देवी के गर्भ में आना । सन्धि- १ सन्धि - २ सन्धि - ३ राजा हयसेन के यहाँ पार्श्वनाथ का जन्म एवं बाल लीलाएँ । हयसेन के दरबार में यवन- नरेन्द्र के राजदूत का आगमन एवं उसके द्वारा हयसेन के सम्मुख यवन- नरेन्द्र की प्रशंसा । सन्धि-४ राजकुमार पार्श्व का यवन- नरेन्द्र से युद्ध तथा मामा रविकीति द्वारा उसके पराक्रम की प्रशंसा । 7 सन्धि - ५ रविकीति द्वारा पार्श्व से अपनी पुत्री के साथ विवाह कर लेने का प्रस्ताव । इसी बीच में वन में जाकर जलते हुए नाग-नागिनी को अन्तिम बेला में मन्त्र-प्रदान एवं वैराग्य । सन्धि - ६ सन्धि - ७ हयसेन का शोक सन्तप्त होना । पार्श्व की घोर तपस्या का वर्णन । पार्श्व तपस्या एवं उन पर कमठ द्वारा किया गया घोर उपसर्ग । सन्धि - ८-९ कैवल्य-प्राप्ति एवं समवशरण - रचना एवं धर्मोपदेश | सन्धि १० रविकीत्ति द्वारा दीक्षा ग्रहण | सन्धि - ११ धर्मोपदेश । सन्धि - १२ पार्श्व के भवान्तर तथा हयसेन द्वारा दीक्षा ग्रहण | अन्त्य - प्रशस्ति । पास नाहचरिउ में समकालीन ऐतिहासिक झाँकियाँ "पासणाहचरिउ" यद्यपि एक पौराणिक महाकाव्य है उसमें पौराणिक इतिवृत्त तथा दैवी चमत्कार आदि प्रसंगों की कमी नहीं । इसका मूल कारण यह है कि कवि विबुध श्रीधर का काल संक्रमणकालीन युग था । कामिनी एवं काञ्चन के लालची मुहम्मद गोरी के आक्रमण प्रारम्भ हो चुके थे, उसकी विनाशकारी लूट-पाट ने उत्तर भारत को थर्रा दिया था । हिन्दू राजाओं में भी फूट के कारण परस्पर में बड़ी कलह मची हुई थी । ढिल्ली के तोमर राजा अनंगपाल को अपनी सुरक्षा हेतु कई युद्ध करने पड़े थे । कवि ने जिस हम्मीर-वीर के अनंगपाल द्वारा पराजित किए जाने की चर्चा की है, सम्भवतः वह घटना कवि की आँखों देखी रही होगी । कवि ने कुमार पार्श्व को यवनराज के साथ तथा त्रिपृष्ट के हयग्रीव के साथ जैसे क्रमबद्ध एवं व्यवस्थित युद्ध-वर्णन किए हैं, वे वस्तुतः कल्पना प्रसूत नहीं किन्तु हिन्दू-मुसलमानों अथवा हिन्दू राजाओं के पारस्परिक युद्धों आँखों देखे अथवा विश्वस्त गुप्तचरों द्वारा सुने गए यथार्थ वर्णन जैसे प्रतीत होते हैं। उनसे उन युद्धों में प्रयुक्त जिन शस्त्रास्त्रों की चर्चा की है, वे पौराणिक ऐन्द्रजालिक अथवा दैवी नहीं अपितु खुरपा, कृपाण, तलवार, धनुष-बाण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522605
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorL C Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1988
Total Pages312
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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