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Vaishali Institute Research Bulletin No. 6
हूँकार भरकर अरिदल में जा घुसता था और उसे रौंद डालता था। इसी कारण हम्मीर को 'हाहुली राव' की संज्ञा प्रदान की गई थी, जैसा कि 'पृथिवीराजरासो' में एक उल्लेख मिलता
"हां'' कहते ढीलन करिय हलकारिय अरि मथ्य ।
ताथें विरद हम्मीर को "हाहुलिराव" सुकथ्य ॥ सम्भवतः इसी हम्मीर को राजा अनंगपाल ने हराया होगा। युद्ध में उसके पराजित होते ही उसके अन्य साथी राजा भी भाग खड़े हुए थे। यथा
___ संघव सोण कीर हम्मीर वि संगरु मेल्लि चल्लिया ॥ ६ ॥ पास० ४।१३।२ ___ अर्थात् सिन्धु, सोन एवं कीर नरेशों के साथ राजा हम्मीर भी संग्राम छोड़कर भाग गया। दिल्ली नगर का इतिहास
विबुध श्रीधर ने पासणाहचरिउ में जिस “ढिल्ली" नगर की चर्चा की है, आधुनिक "दिल्ली" का वह तत्कालीन नाम है। कवि के समय में वह हरयाणा-प्रदेश का ही एक प्रमुख नगर था। 'पृथिवीराजरासो' में पृथिवीराज चौहान के प्रसंगों में दिल्ली के लिए "ढिल्ली' शब्द का ही प्रयोग हुआ है। उसमें इस नामकरण की एक मनोरंजक कथा भी कही गई है, जिसे तोमरवंशी राजा अनंगपाल की पुत्री अथवा पृथिवीराज चौहान की माता ने स्वयं पृथिवीराज को सुनायी थी। उसके अनुसार राज्य की स्थिरता के लिए एक ज्योतिषी के आदेशानुसार जिस स्थान पर कीली गाड़ी गई थी, वह स्थान प्रारम्भ में "किल्ली'' के नाम से प्रसिद्ध हुआ, किन्तु उस कील को ढीला कर देने से उस स्थान का नाम 'ढिल्ली' पड़ गया, जो कालान्तर में दिल्ली के नाम से जाना जाने लगा। १८ वीं सदी तक दिल्ली के ११ नामों से “ढिल्ली' भी एक नाम माना जाता रहा, जैसा कि "इन्द्रप्रस्थ-प्रबन्ध" (श्लोक संख्या १४-१५) में एक उल्लेख मिलता है--
शनपन्था इन्द्रप्रस्था शुभकृत् योगिनीपुरः । दिल्ली दिल्ली महापुर्या जिहानाबाद इष्यते ।। सुषेणा महिमायुक्ता शुभाशुभकरा इति ।
एकादश मित नामा दिल्ली पुरा च वर्तते ॥ [पद्म-१४-१५] इस प्रकार पासणाहचरिउ में राजा अनंगपाल, राजा हम्मीर-वोर एवं दिल्ली के उल्लेख ऐतिहासिक दृष्टि से बड़े महत्त्वपूर्ण हैं। इन सन्दर्भो तथा समकालीन साहित्य एवं इतिहास के तुलनात्मक अध्ययन से मध्यकालीन भारतीय इतिहास के कई प्रच्छन्न अथवा जटिल रहस्यों का उद्घाटन सम्भव है। आश्रयदाता नट्टल साहू
जैसाकि पूर्व में लिखा जा चुका है कि प्रस्तुत रचना की आधप्रशस्ति के अनुसार कवि अपनी 'चंदप्पहचरिउ' की रचना समाप्ति के बाद असंख्य कार्य-व्यस्त ग्रामों वाले हरयाणा१. दे० वड्डमाण, भूमिका पृ० ७० ।
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