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महाकवि विबुध श्रीधर एवं उनकी अप्रकाशित रचना "पासणाहचरिउ"
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उल्लेखानुसार कवि ने 'चंदप्पहचरिउ' एवं 'संतिजिणेसरचरिउ'' नामक दो रचनाएँ और भी लिखीं थीं। किन्तु ये दोनों अभी तक अनुपलब्ध ही है। हो सकता है कि कवि ने अपनी इन प्रारम्भिक रचनाओं की प्रशस्तियों में स्व-विषयक कुछ विशेष परिचय दिया हो, किन्तु यह सब तो उन रचनाओं की प्राप्ति के बाद ही कुछ कहा जा सकेगा। काल-निर्णय
विबुध श्रीधर की जन्म अथवा अवसान सम्बन्धी तिथियाँ भी अज्ञात हैं। उनकी जानकारी के लिए सन्दर्भ सामग्री का सर्वथा अभाव है। इतना अवश्य है कि कवि की उपलब्ध निम्न चार रचनाओं की प्रशस्तियों में उनका रचना-समाप्तिकाल अंकित है। उनके अनुसार 'पासणाहचरिउ' तथा 'वढमाणचरिउ' का रचना-समाप्तिकाल क्रमशः वि० सं० ११८९ एवं ११९० तथा 'सुकुमालचरिउ' एवं 'भविसयत्तकहा' का रचना समाप्तिकाल क्रमशः वि० सं० १२०८ और १२३० है । जैसाकि पूर्व में बताया जा चुका है, 'पासणाह चरिउ' एवं 'वड्डमाणचरिउ' में जिन पूर्वोक्त 'चंदप्पह चरिउ' एवं 'संतिजिणेसरचरिउ' नामक अपनी पूर्व रचित रचनाओं के उल्लेख कवि ने किए है, वे अद्यावधि अनुपलब्ध ही हैं। उन्हें छोड़कर बाकी उपलब्ध चारों रचनाओं का रचनाकाल वि० सं० ११८९ से १२३० तक का सुनिश्चित है। अब यदि यह मान लिया जाय कि कवि को उक्त प्रारम्भिक रचनाओं के प्रणयन में १० वर्ष लगे हों तथा उसने २० वर्ष की आयु से साहित्य-लेखन का कार्यारम्भ किया तो तब अनुमानतः कवि की कुल आयु लगभग ७१ वर्ष की सिद्ध होती है और जब तक अन्य ठोस सन्दर्भ-सामग्री प्राप्त नहीं होती तब तक मेरी दृष्टि से कवि का कुल जीवनकाल वि० सं० ११५९ से १२३० तक माना जा सकता है। निवास एवं साधना-स्थल एवं समकालीन राजा
_ 'पासणहचरिउ' की प्रशस्ति में उसने अपने वह वहाँ से 'चंदप्पह चरिउ' की रचना समाप्ति के बाद यमुना नदी पार करके 'दिल्ली' आया था। उस समय वहाँ राजा अनंगपाल तोमर का राज्य था, जिसने हम्मीर जैसे वीर राजा को भी पराजित किया था। यथा-णिरुदलवट्टिय हम्मीर वीरुपास० ११४।२
१८ वीं सदी के अज्ञात कत्तक “इन्द्रप्रस्थप्रबन्ध"५ नामक ग्रन्थ में उपलब्ध तोमरबंशी २० राजाओं में से उक्त अनंगपाल अन्तिम २० वाँ राजा था। इनमें अनंगपाल नामके तीन राजा हुए जिनमें से प्रस्तुत अनगपाल तीसरा था। इसने जिस हम्मीर वीर को पराजित किया था, प्रतीत होता है कि वह कांगड़ा नरेश हाहुलिराव हम्मीर रहा होगा, जो एक बार
१-२. वड्डमाणचरिउ (सम्पा० डॉ० राजाराम जैन) भारतीय ज्ञानपीठ दिल्ली द्वारा प्रकाशित,
भूमिका पृ० १०-११ । ३. पास १।२।५-१६ । ४. दे० बड्डमाण० भूमिका पृ० ७० । ५. राजस्थान पुरातत्त्व विद्या मन्दिर, जोधपुर (१९६३) से प्रकाशित दे० भूमिका पृ० ४ ।
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