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सरस्वती - पुत्र पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री
प्रो० उदयचन्द्र जैन*
प्रातः स्मरणीय पूज्य गुरुवर सिद्धान्ताचार्य पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री के आकस्मिक निधन से जैन विद्वज्जगत् में जो रिक्तता आ गयी है उसकी पूर्ति निकट भविष्य में संभव नहीं है । वे जैन समाज के ही नहीं किन्तु भारतीय समाज के मूर्धन्य विद्वान् थे । वे प्रारंभ में काशी स्थित श्री स्याद्वाद महाविद्यालय के छात्र थे और अध्ययन समाप्ति के बाद वे इस महाविद्यालय के प्राचार्य बने । उनके ३०-४० वर्ष के प्राचार्य काल में स्याद्वाद महा विद्यालय में अध्ययन करके जैन दर्शन, न्याय, साहित्य, व्याकरण, ज्योतिष आदि विषयों के सैकड़ों ऐसे ठोस विद्वान् निकले जो भारत में ही नहीं किन्तु विदेशों में भी शिक्षा आदि के विभिन्न क्षेत्रों में सफलतापूर्वक कार्यरत हैं । वर्तमान में स्याद्वाद महाविद्यालय के अनेक स्नातक विभिन्न विश्वविद्यालयों में अच्छे-अच्छे पदों पर कार्य कर रहे हैं । कहने का तात्पर्य यह है कि पं० जी के समय में शिक्षा का स्तर बहुत अच्छा था और उस समय प्रत्येक विषय के ठोस विद्वान् तैयार होते थे ।
मैंने सन् १९४० में स्याद्वाद महाविद्यालय में प्रवेश लेकर सन् १९४९ तक वहाँ शिक्षण प्राप्त किया है । इन वर्षों में मैंने पूज्य पं० जी के चरणों में बैठकर जैन दर्शन के उच्च कोटि के ग्रन्थों का अध्ययन किया है। पं० जी की पाठन शैली की विशेषता यह थी कि वे प्रतिदिन प्रत्येक विद्यार्थी से पिछले दिन का पाठ सुनने के बाद ही अगला पाठ पढ़ाते थे । इसका फल यह होता था कि प्रत्येक छात्र परिश्रमपूर्वक पाठ याद करता था और परीक्षा के समय उसे किसी प्रकार की कठिनाई का अनुभव नहीं होता था । इसी के फलस्वरूप अपने विषयों के निष्णात् विद्वान् तैयार होते थे। आज वह बात कहाँ है ।
पूज्य पं० जी यथार्थ में सरस्वती - पुत्र थे । वे जैन विद्या के जैन सिद्धान्त, जैनागम, जैन न्याय, जैन साहित्य आदि प्रत्येक अंग के पूर्ण ज्ञाता थे । वे एक कुशल वक्ता, कुशल लेखक, कुशल सम्पादक, अनुवादक, अच्छे साहित्य निर्माता और निर्भीक पत्रकार थे । प्रायः देखने में आता है कि कोई व्यक्ति एक विषय का ही विशिष्ट विद्वात् होता है किन्तु वे अनेक विषयों के विशिष्ट विद्वान् । यह सब उनके ऊपर सरस्वती की कृपा का ही फल रहा है । पूज्य पं० जी में उच्च कोटि की वक्तृत्व कला एवं लेखन कला थी । प्रायः देखा जाता है। कि जो अच्छा वक्ता होता है वह कुशल लेखक नहीं होता और जो अच्छा लेखक होता है वह कुशल वक्ता नहीं होता । किन्तु पं० जी इसके अपवाद थे । सम्पूर्ण जैन समाज के लोग पर्युषण पर्व आदि अवसरों पर पं० जी के भाषण को सुनने के लिए लालायित रहते * भू० पू० दर्शन विभागाध्यक्ष, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ।
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