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________________ राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त और उनकी अमरकृति 'साकेत' 185 'गोरे देवर-श्याम उन्हीं के ज्येष्ठ हैं।' राजनैतिक आदर्श की अभिव्यक्ति 'सावेत' में इस प्रकार हुई है विगत हो नरपति रहें नर-मात्र, और जो जिस कार्य के हो पात्र ! वे रहें उस पर समान नियुक्त, सब जिएँ ज्यों एक ही कुल मुक्त ! इस प्रकार 'साकेत' में भारतीय संस्कृति के एक-से-एक उज्ज्वल चित्र अंकित है । 'साकेत' का महाकाव्यत्व साकेत आधुनिक युग का काव्य है, उसके काव्य-रूप का निर्णय आधुनिक मान्यताओं के आधार पर होना चाहिए न कि संस्कृताचार्यों के द्वारा दिये गये लक्षणों के आधार पर । यदि हम प्राचीन लक्षणों की दृष्टि से काव्यों के विभिन्न रूपों का निर्णय करने बैठ जायें तब तो 'रामचरित मानस' जैसे काव्य को भी महाकाव्य नहीं माना जा सकता; क्योंकि उसमें केवल सात ही काण्ड हैं जबकि संस्कृताचार्यों के लक्षणों के अनुसार महाकाव्य आठ सर्गों से कम का हो ही नहीं सकता। अतः यहाँ पर हमें 'साकेत' के काव्य-रूप पर आधुनिक दृष्टि से विचार करना है। यदि महाकाव्य के आधुनिक लक्षणों की दृष्टि से 'साकेत' को देखने लग जायें तो हम देखेंगे कि इसकी कथावस्तु ऐतिहासिक है और आज के स्वदेश तथा विदेश के सभी आचार्य महाकाव्य की कथावस्तु ऐतिहासिक अथवा लोक प्रसिद्ध होना मानते हैं। गुप्तजी ने 'साकेत' की कथावस्तु में कुछ मौलिक उद्भावनाएँ भी की हैं, जिनका उल्लेख कथावस्तु के अन्तर्गत हो चुका है । इन नूतन उद्भावनाओं से कवि में महाकाव्य रचना के उपयुक्त प्रतिभा का भी पता चलता है। चरित्र-चित्रण भी महाकाव्य का महत्वपूर्ण अंग है । महाकाव्य में महच्चरित्रों का अंकन होना चाहिए। 'साकेत' में हमें यह भी मिलता है। राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, सीता, उमिला, माण्डवी, कैकयी आदि से बढ़कर और कौन से महान् पात्रों की कल्पना हो सकती है ? चरित्र-चित्रण में भी कवि ने एक महाकाव्यकार की प्रतिभा का परिचय दिया है। यद्यपि परम्परा मुक्त चरित्रों में किसी प्रकार का हेर-फेर करना खतरे से खाली नहीं; किन्तु साकेतकार ने यह भी किया है। 'साकेत' के राम ईश्वर की अपेक्षा मानव के अधिक निकट हैं; भरत के चरित्र में भी साधुता की वृद्धि हुई है। लक्ष्मण के स्वभाव से परम्परागत लक्ष्मण से कुछ अधिक आ गयी है, आदि । गुप्तजी ने कैकेयी जैसे धिक्कृत का भी परिष्कार किया है और रही उपेक्षिता उर्मिला, उसके लिए तो पूरे साहित्य की रचना हुई है। महाकाव्य में वीर अथवा शृंगार रस अंगी रूप में आना चाहिए । 'साकेत' इस दृष्टि से भी महाकाव्य के रूप में सफल है। इसका प्रधान रस रसराज शृंगार है और शृंगार में भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522605
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorL C Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1988
Total Pages312
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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