________________
184
Vaishali Institute Research Bulletin No. 6
द्विजता तक आततायिनी वध में है कब दोष-दायिनी ।
भारतीय संस्कृति में पत्नी को बड़ा ही गौरवपूर्ण स्थान दिया गया है । उसे पति के सुःख-दुःखों में समभागी माना गया है, इसलिए उसे अर्द्धांगिनी भी कहा गया है । अर्द्धांगिनी के अभाव में कोई अनुष्ठान पूरा नहीं हो सकता । गुप्तजी भी इसी पक्ष हैं
पारिवारिक आदर्शों में पति-पत्नी का सम्बन्ध, भाई-भाई का सम्बन्ध, भाभी देवर का 1- इत्यादि भारतीय परिवार के सभी सम्बन्ध संसर्ग अपने आदर्श
मातृ सिद्धि, पितृ सत्य सभी, मुझ अर्द्धांगी बिना अभी ।
है अर्द्धांग अधुरे ही, सिद्ध करो तो पूरे ही ।
सम्बन्ध, सास-बहू का सम्बन्ध - रूप में यहाँ मिलेंगे ।
'साकेत' में भारत के महान नैतिक आदर्शों को भी सम्यक् अभिव्यक्ति मिली है । राम और भरत से बढ़कर निर्लोभता का उदाहरण कहाँ मिलेगा -- दोनों ही राज्य-जैसी महान वस्तु को तृष्णवत् समझते हैं । भारतीय नृपतियों का आदर्श विजय-लाभ रहा है, शत्रु का धन लूटना नहीं । इसकी अभिव्यक्ति उर्मिला के इन शब्दों में मिलती है-
लिए भी एक पत्नीव्रत का उनके शब्द हैं
भारतीय नीति शास्त्रों में
नहीं नहीं पापी का सोना,
यहाँ न लाना, भले, सिन्धु में वहीं डुबोना । यदि स्त्रियों के नियम रखा गया है
।
Jain Education International
लिए पातिव्रत्य का विधान है तो पुरुषों के लक्ष्मण इसी विधान के मानने वाले हैं ।
यदि सीता ने एक राम को ही वर माना, यदि मैंने निज वधू उर्मिला को ही जाना ।
नीति का एक रूप शिष्टाचार भी है। अपने से बड़ों के प्रति, स्त्रियों के प्रति अपने तथा दूसरों के प्रति हमारा व्यवहार कैसा होना चाहिए, यह सभी 'साकेत' में मिल जायेगा । भारत का आतिथ्य तो प्रसिद्ध ही है । चित्रकूटवासी राम के द्वारा इसका सुन्दर दिग्दर्शन 'साकेत' में हुआ है
अपना आमंत्रित अतिथि मानकर सबको, पहले परोस परि तृप्ति दान कर सबको, प्रभु ने स्वजनों के साथ किया भोजन यों ।
भारतीय संस्कृति में स्त्रियाँ अपने पतियों का नाम नहीं लेती। सीता भी मार्ग की स्त्रियों को राम का परिचय बड़े ही संकोच के साथ इस प्रकार देती हैं
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org