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________________ 178 Vaishali Institute Research Bulletin No. 6 ___ सारांश में 'साकेत' का यही कथानक है। कवि ने इस कथानक में कुछ मौलिक उद्भावनाएँ भी की हैं। ये मुख्य उद्भावनाएँ हैं- (१) पुष्प-वाटिका में केवल सीता ही रामलक्ष्मण के दर्शन नहीं करती, वरन् उमिला भी उन्हें देखती है और लक्ष्मण को अपना हृदय दे. बैठती हैं। (२) चित्रकूट-प्रसंग में कवि ने कैकेयी के चरित्र को भली प्रकार उभारा है और उसके मस्तक से कलंक का सारा टीका धो दिया है। (३) बालकाण्ड की कथा उमिला, अरण्य की शत्रुघ्न, किष्किंधा और लंका की हनुमान कहते हैं, युद्ध का दृश्य वसिष्ठ जी अपनी योगदृष्टि से देखते हैं। इस प्रकार चित्रकूट-मिलन के अतिरिक्त सभी घटनाएँ वर्णित होती हैं । (४) उर्मिला को नायिका का गौरव देना कवि की बहुत बड़ी मौलिकता है। (५) लक्ष्मणशक्ति के विषय में सुनकर साकेतवासियों की रणसज्जा रामकथा के लिये एक नूतन प्रसंग है । ये सभी उभावनाएँ साभिप्राय हैं; किन्तु उनके उद्देश्यों का वर्णन यहाँ सम्भव नहीं । 'साकेत' में चरित्र-चित्रण----डॉ० नगेन्द्र दो प्रकार के पात्र स्वीकार करते हैं । इस दृष्टि से विचार करने पर 'साकेत' में केवल राम ही ऐसे हैं, जिन्हें अमानवीय पात्रों की श्रेणी में रखा जा सकता है। यद्यपि उनमें भी कुछ मानवीय दुर्बलताएँ हैं ---उनके अन्दर भी यदाकदा मोह की भावना प्रबल हो उठी है-"आता है जी में तात यही, पीछे-पहले व्यवधान महीं, झट लोटू चरणों में आकर !" किन्तु वे अपनी इन दुर्बलताओं पर शीघ्र ही विजय पा लेते हैं और सहज ही सामान्य मानव के स्तर से ऊपर उठ जाते हैं । मानवीय पात्रों के अन्तर्गत वे पात्र आते हैं जिनमें मानवोचित सहज गुण हैं जिनमें गुण भी हैं और दुर्बलाएँ भी। कहने का तात्पर्य यह कि इन मानवीय पात्रों में देवत्व और दनुजत्व का मिश्रण रहता है । राम के अतिरिक्त 'साकेत' के अन्य सभी पात्र मानवीय हैं । यह बात दूसरी है कि कुछ पात्रों में दनुजत्व की अपेक्षा देवत्व अधिक हो, जैसे-भरत में या फिर कुछ में देवत्व से दनुजत्व बढ़ गया हो, जैसे -मेघनाद और रावण में । भाव यह कि राम को छोड़कर 'साकेत' का एक भी पात्र ऐसा नहीं, जिसमें केवल देवत्व-ही-देवत्व हो, उसमें दनुजत्व का अंश न हो। सभी में देवत्व और दनुजत्व है-हाँ ! मात्रा भेद अवश्य हो सकता है और है भी। मानवीय पात्रों में भी मुख्य रूप से दो प्रकार के पात्र हो सकते हैं--(१) संस्कार निर्मित पात्र और (२) परिस्थिति निर्मित पात्र । यदि अंग्रेजी की परिभाषिक शब्दावली में कहना चाहें तो इन्हें क्रमशः Flat cbaracters और Round characters नाम दिये जा सकते हैं। संस्कार निर्मित पात्र प्रारम्भ से अन्त तक एक-से रहते हैं, इनके विकास में किसी प्रकार की गुन्जाईश नहीं होती। परिस्थिति निर्मित पात्र विकसनशील होते हैं-परिस्थिति के वशीभूत हो वे ऐसे भी कार्य कर सकते है, जिनकी उनसे आशा नहीं की जाती। इन पात्रों के विषय में निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि वे आगे चलकर किस प्रकार का मोड़ लेंगे। भरत, सीता, कौशल्या, मांडवी, शत्रुघ्न तथा सुमित्रा प्रथम प्रकार के और उमिला, लक्ष्मण तथा कैकेयी द्वितीय प्रकार के पात्र हैं। दोनों प्रकार के पात्रों में से एक-एक को लेकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522605
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorL C Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1988
Total Pages312
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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