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________________ राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त और उनकी अमरकृति 'साकेत' 179 उनके चरित्रों पर प्रकाश डालने से बात स्पष्ट हो जायेगी । संस्कार-निर्मित पात्रों में से सुमित्रा को लेने पर हम देखते हैं कि राम-वन-गमन के अवसर पर वह कठोर मात्तृत्व का परिचय देती है, लक्ष्मण शक्ति का दृश्य देखकर भी उसके व्यक्तित्व में किसी प्रकार का अन्तर नहीं आता। परिस्थिति-निर्मित पात्रों में उर्मिला को लीजिये। उसके विषय में डा० नगेन्द्र के शब्द हैं.---. उर्मिला के चरित्र का विकास परिस्थितियों के प्रतिघात से होता है और उसकी त्यागवृति धीरे-धीरे उस पर विजय लाभ करती हई आदर्श की ओर बढ़ती है। उसका आदर्श आत्मत्याग संस्कार के रूप में उसे प्राप्त नहीं--वह धीरे-धीरे विकसित होता है। पहले तो वह उस त्याग को विवश भाव से ही मानती है, परन्तु बाद में जाकर वह सती और लक्ष्मी को भी पीछे छोड़ देती है--अन्त में लक्ष्मण के दर्शन पाकर उसका नारीत्व फिर जागृत हो जाता है और लक्ष्मण के यह कहने पर भी कि 'धन्य अनावृत प्रकृत रूप यह मेरे आगे' उसे यही चिंता होती है 'किन्तु कहाँ वे अहोरात्र वे साँझ सबेरे ।' हनुमान, भरत तथा विभीषण के व्यक्तित्व कवि के अपने भक्त हृदय के विचारों को अभिव्यक्ति करते हैं। चरित्र-चित्रण में गुप्तजी ने स्वाभाविकता की पूर्ण रक्षा की है । उन्होंने अपने पात्रों के चरित्रों के धवल तथा कृष्ण दोनों ही पक्षों पर प्रकाश डाला है। जब भरत कैकेयी को भर्त्सनापूर्ण शब्द सुनाते हैं तो लांछित होकर भी कैकेयी का अहं दृप्त हो उठता है और वह भरत को डाँट बैठती है। इस प्रकार कवि ने मानव-जन को भली-भाँति परखा है। उर्मिला के विरह वर्णन में कवि ने उसके हृदय की द्विधा को भली प्रकार जाना है और इसलिए वह उससे ( उमिला ) से 'कभी आओ' कहलाता है और कभी 'जाओ' । गुप्तजी ने अपने पात्रों के चरित्र उद्घाटन में प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों शैलियाँ अपनाई हैं। उन्होंने अपने पात्रों के चरित्र पर प्रकाश कभी तो दूसरे पात्रों के संवादों द्वारा डलवाया है और कभी स्वयं पात्र के ही क्रिया-कलाप तथा संलाप के माध्यम से उसके चरित्र का उद्घाटन किया है। परम्परागत पात्रों के चरित्रों को नया मोड़ देना बड़ा ही कठिन कार्य होता है पर 'साकेत' के कवि ने इस गुरुतर दायित्व का निर्वाह भी भली प्रकार किया है। उमिला और मांडवी तो कवि की अपनी ही सृष्टि हैं। लक्ष्मण, दशरथ तथा कैकेयी भी मानस के लक्ष्मण, दशरथ तथा कैकेयी से बहुत कुछ भिन्न हैं । शत्रुघ्न और सुमित्रा में भी अधिक सजीवता है । 'साकेत' में अभिव्यक्त गार्हस्थ जीवन 'साकेत' में गार्हस्थ जीवन की सुन्दर अभिव्यक्ति हुई है। यहाँ पति-पत्नी, पिता-पुत्र , माता-पुत्र, भाई-भाई, देवर-भाभी, सास-पुत्रवधू, सौतेले माँ-पुत्र, स्वामी-सेवक आदि सभी सम्बन्धों का अत्यन्त भव्य चित्र अंकित हुआ है। पति-पत्नी के रूप में 'साकेत' में हमें पाँच दम्पति दिखाई देते हैं-उमिला-लक्ष्मण, राम-सीता, भरत-माण्डवी, शत्रुघ्न-श्रुतिकीति तथा दशरथ और उनकी तीनों रानियाँ । दाम्पत्य जीवन का प्रमुख रस शृंगार है। शृंगार में भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522605
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorL C Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1988
Total Pages312
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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