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________________ शब्द-अद्वैतवाद का समालोचनात्मक विश्लेषण : जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में 97 वैखरी आदि अविद्यास्वरूप नहीं है शब्द-अद्वैतवादी का यह कथन भी सत्य नहीं है कि एकमात्र शब्दब्रह्म सत्य है और वैखरी आदि चार अवस्थाएँ अविद्यास्वरूप होने से असत्य हैं। इस कथन के ठीक न होने का कारण यह है कि निरंश शब्दब्रह्म विद्यास्वरूप सिद्ध है। इसलिए उसकी अवस्थाएँ भी अविद्यास्वरूप न होकर विद्यास्वरूप ही होंगी। इस प्रकार वैखरी आदि को अविद्यास्वरूप मानना तर्कसंगत नहीं है। अर्थ शब्द से अन्वित है-यह कैसे जाना जाता है ? प्रभाचन्द्राचार्य न्यायकुमुदचन्द्र में शब्द-अद्वैतवादी से कहते हैं कि शब्द और अर्थ का सम्बन्ध होने पर अर्थ शब्द से अन्वित है-यह किसी प्रमाण से जाना जाता है या नहीं ? यह तो माना नहीं जा सकता है कि किसी प्रमाण से नहीं जाना जाता है, अन्यथा अतिप्रसंग नामक दोष आयेगा अर्थात् सबके कथन की पुष्टि बिना प्रमाण के होने लगेगी। दूसरी बात यह है कि "जो जिससे असम्बद्ध होता है, वह उससे वास्तव में अन्वित नहीं होता, जैसे-- हिमालय और विन्ध्याचल पर्वत असम्बद्ध हैं, इसलिए हिमालय से विन्ध्या वल अन्वित नहीं है। इसी प्रकार अर्थ से शब्द भी असम्बद्ध है अर्थात् अर्थ शब्द से अन्चित नहीं है । इस अनुमान से विरोध आता है। शब्द और अर्थ में कौन-सा सम्बन्ध है ? अब यदि यह मान लिया जाय कि शब्द और अर्थ में परस्पर सम्बन्ध है, तो शब्दअद्वैतवादियों को यह भी बतलाना चाहिए कि उनमें कौन-सा सम्बन्ध है ? उनमें निम्नांकित सम्बन्ध ही हो सकते हैं: (क) क्या शब्द और अर्थ में संयोग सम्बन्ध है ? (ख) क्या उनमें तादात्म्य सम्बन्ध है ? (ग) क्या विशेषणी भाव सम्बन्ध हैं ? (घ) अथवा वाच्य-वाचक भाव सम्बन्ध है ? शब्द और अर्थ में संयोग सम्बन्ध नहीं है शब्द और अर्थ दोनों मलय पर्वत और हिमाचल को तरह विभिन्न देश में रहते हैं अर्थात् शब्द श्रोत्र प्रदेश में और अर्थ सामने अपने देश में रहता है, इसलिए उनमें उसी १. शब्दब्रह्मणोनंशस्य विद्यात्वसिद्धौ तदवस्थानामविद्यात्वाप्रसिद्धेः । वही । २. · · · शब्देनान्वितत्वमर्थस्य कुतश्वित् प्रमागात् प्रतीयेत् असति वा ? -प्रभाचन्द्र : न्या. कु. च. १/५, पृ. १४४ । ३. वही। ४. अथ सति सम्बन्धे; ननु कोऽयं तस्य तेन सम्बन्धः संयोगः, तादात्म्यम् विशेषणीभाव: वाच्यवायकभावो वा ? -प्रभाचन्द्र : न्या० कु० च०; पृष्ठ १४४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522605
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorL C Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1988
Total Pages312
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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