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________________ Vaishali Institute Research Bulletin No. 6 प्रकार से संयोग सम्बन्ध नहीं हो सकता, जैसे—मलय और हिमाचल में संयोग सम्बन्ध नहीं है। भिन्न देश में रहने पर भी यदि शब्द और अर्थ संयोग सम्बन्ध माना जाय, तो अद्वैत सिद्ध नहीं हो सकता। दूसरी बात यह है कि शब्द और अर्थ दोनों विभिन्न द्रव्य हो जायेंगे, क्योंकि संयोग सम्बन्ध दो पदार्थों में होता है । शब्द-अर्थ में तादात्म्य सम्बन्ध नहीं है शब्द और अर्थ में तादात्म्य सम्बन्ध मानना भी ठीक नहीं है, क्योंकि दोनों विभिन्न इन्द्रियों के द्वारा जाने जाते हैं। वादिदेव कहते हैं कि शब्द-अर्थ में तादात्म्य सम्बन्ध नहीं है, क्योंकि प्रत्यक्ष प्रमाण से उसका निराकरण हो जाता है । चाक्षुष-प्रत्यक्ष पट, कुट आदि पदार्थों को शब्द से भिन्न जानता है। इसी प्रकार श्रोत्र-प्रत्यक्ष भी कुटादि से भिन्न शब्द को जानता है। अनुमान भी शब्द-अर्थ के तादात्म्य सम्बन्ध होने का विरोधी है प्रभाचन्द्र और वादिदेव कहते हैं कि शब्द और अर्थ में तादात्म्य सम्बन्ध नहीं है, क्योंकि स्तम्भ ( खम्भा ) और कुम्भ की भाँति शब्द और अर्थ भिन्न देश , भिन्न काल और भिन्न आकार वाले हैं। इन दोनों का भिन्न देश में होना असिद्ध नहीं है, क्योंकि शब्द कर्णकुहर में और अर्थ भूतल में उपलब्ध होता है । यदि दोनों अभिन्न देश में रहते, तो प्रमाता की शब्द के उपलब्ध करने में प्रवृत्ति होनी चाहिए, अर्थ में नहीं। किन्तु, अर्थ में ही उसकी प्रवृत्ति होती है, शब्द में नहीं। शब्द से पहले पदार्थ रहता है, इसलिए वे भिन्न काल वाले भी हैं। इसी प्रकार भिन्न-भिन्न आकार वाले भी शब्द-अर्थ सिद्ध हैं। एक बात यह भी है कि यदि अर्थ शब्दात्मक है तो शब्द की प्रतीति होने पर संकेत न जानने वाले को भी अर्थ में सन्देह नहीं होना चाहिए। इसके अतिरिक्त अग्नि, पाषाण आदि शब्द सुनते ही कान में दाह, अभिघात आदि होना चाहिए। अभयदेव सूरि और भद्रबाहु स्वामी ने भी यही कहा है । लेकिन ऐसा नहीं होता। सिद्ध है कि शब्द और अर्थ में तादात्म्यसम्बन्ध के अभाव में भी अर्थ की प्रतीति शब्दों में रहने वाली संकेत और स्वाभाविक १. तत्सम्बन्धाभ्युपगमे च अनयोर्द्रव्यान्तरत्व सिद्धप्रसंगात् कथं तदद्वैतसिद्धिः स्यात् ? वही। २. द्रष्टव्य-स्या० र०, १/७, पृ० ९४ । ३. नास्ति शब्दार्थयोस्तादात्म्ये विभिन्नदेश-काल-आकारत्वात् । (क) प्रभाचन्द्र : न्या० कु० च०, पृ० १४४ । (ख) वादिदेव : स्या० र०, १/७, पृ० ९४ । ४. वही। ५. वही, और भी देखें : प्र० क० प्रा०, १/३, पृ० ४६ । ६. (क) शब्दार्थयोश्च तादात्म्ये क्षुराग्निमोदका दिशब्दोच्चारणे आस्यपाटनदहनपूरणादि प्रसक्तिः-अभयदेव सूरि : सं० त० प्र० टोका, पृ० ४८६ । (ख) अभिहाणं अभिहेउ होई भिष्णं अभिष्णं च । सुरअण्णि मोयगुटमारणग्मि जम्हा वयणसवणाणं ।। -स्या० म०, पृ० ११८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522605
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorL C Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1988
Total Pages312
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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