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________________ 60 Vaishali Institute Research Bulletin No. 6 णित्तण प्रदान किया है। डा० हीरालाल जैन ने णायकुमारचरिउ की भाषा पर विचार करते हुए उसकी ४१ विशेषताएँ स्पष्ट की हैं। उनमें से अधिकांश प्राकृत की भी हैं। किन्तु कुछ विशेषताएँ केवल अपभ्रंश में ही मिलती हैं। एक स्थान पर नागकुमार व्यालभट्ट को शीघ्रता से शत्रु पर विजय करने के लिए भेजना चाहता है। तब वह कहता है-तुम शीघ्र जाओ और तुरन्त भूमि दिलवा दो जज्जाहि बप्प देदेहि महि । ससुरहो रिऊ मारिवि लच्छि सहि । ( ६. १२. ११ ) यहाँ जज्जाहि और देदेहि में शब्दों का द्वित्व शीघ्रता के लिए किया गया है। १०. पुष्पदन्त ने अपनी रचनाओं में अपभ्रंश के कुछ ऐसे शब्दों का प्रयोग भी किया है, जो प्राकृत शब्दकोशों में उपलब्ध नहीं होते हैं। अतः अपभ्रंश के शब्दकोश के लिए पुष्पदन्त ने कितने ही नये शब्द प्रदान किये हैं । यथाअलिघाइ सरलता घणघण = बहुत अलयद्द जल का सॉप चिण्णाअ खाया हुआ कम्पण भाला, कटार जलचर शंख कल स्वाद लेना कामदेव कुसेसय ___ कमल णिवावण = शान्त होना कब्बुर स्वर्ण तारिणिणाह समुद्र कालि रात्रि पयंघण वस्त्र केल शराब का ग्लास मजाकिया खुद्दहीर चन्द्रमा वल्लूर सूखा मांस खणरूइ प्रकाश विण बीनना खेउ सवलहण मुर्दा जलाना गलमोडी गले का टेढ़ापन सरहि समुद्र अपभ्रंश साहित्य के अब इतने ग्रन्थ प्रकाश में आ गये हैं कि अपभ्रंश कोश का निर्माण किया जा सकता है। डा० देवेन्द्रकुमार शास्त्री १०-१५ वर्षों से इस कार्य में संलग्न हैं। किन्तु साधनों के अभाव में किसी एक व्यक्ति की सामर्थ्य का यह काम नहीं है। किसी समर्थ संस्था एवं विद्वानों की टीम को अपभ्रंश कोश के कार्य में लगकर शीघ्र प्रकाशित करना चाहिये। किन्तु तबतक विद्वानों को व्यक्तिगत अध्ययन के आधार पर ऐसे शब्दों की सूची (कास) बनाते रहना चाहिये, जो उन्हें शब्दकोशों में न मिलें । यह सामग्री अपभ्रंश शब्दकोश के निर्माण में पर्याप्त सहायक होगी। हमारे विभाग की "अपभ्रंश अनुसन्धान योजना" स्कीम के अन्तर्गत अपभ्रंश के प्रकाशित ग्रन्थों के शब्दकोश निर्माण की योजना कार्यरत है। स्वयम्भू-कोश, पुष्पदन्त-कोश एवं रइवू-कोश आदि स्वतन्त्र एवं छोटे कार्य भी शीघ्र किये जा सकते हैं। देरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522605
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorL C Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1988
Total Pages312
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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