SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 106
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ न्त का माषात्मक अवदान 59 काणि कोट्ठ कोठा ΛΛΛΛΛΛΛΛΛ. घोड चित्तय = व्याघ्र > चित्ता झड़प्पण आक्रमण > झड़प झूर = खेदकरना > भरणे डोर - धागा > दोर थरहर = कांपना > थरथरणे थोट्ट = छिन्नहस्त> थोटा हडाविय = दूर करना > हटविलेले राजस्थानी१२ अप्पणव अपना आपणो कंचुलिस स्तनवस्त्र कांचली आंखविहीन कांणी कोठो घल्ल डालना घालणा अश्व घोडो पियार प्रियतर पियारो लोण मक्खन लोण वाड निवासस्थान > वाड़ो ८. राष्ट्रभाषा हिन्दी के स्थान को प्राकृत और अपभ्रंश की शब्दावली के ज्ञान के बिना नहीं समझा सकता है। 3 अकेले पुष्पदन्त ने हिन्दी को लगभग २०० शब्द प्रदान किये हैं । कई शब्दों की परम्परा तो इससे बहुत प्राचीन है। पुष्पदन्त के अपभ्रंश के कुछ शब्द द्रष्टव्य हैं, जो आज भी हिन्दी में प्रचलित हैं । यथाअज्जिया आजी ( पिता की माँ) गलख आसवार असवार ( घुड़सवार) गिल्ल गीला कक्कर कंकर झुट्ठ झूठ कयार कचरा ( कवाड़) टोप्पी कूकरी ( कुतिया ) तेरउ तेरा कल्लाल कलाल ( मद्य-विक्रेता) दूण > खुंटा पत्थर खेलिर खिलाड़ी ९. यद्यपि अधिकांश विद्वान् यह मानकर चलते हैं कि प्राकृत और अपभ्रंश एक भाषा के दो रूप हैं, किन्तु भाषात्मक गठन, शब्द सम्पत्ति एवं अर्थ-वैचित्र्य की दृष्टि से अपभ्रंश एक स्वतन्त्र भाषा है। प्राकृत के आधार पर वह विकसित अवश्य हुई है, किन्तु उसने अपनी अलग पहिचान बनाई है। पुष्पदन्त के काव्यों ने अपभ्रंश को एक नया रूप १२. जैन, प्रेम सुमन; "राजस्थानी भाषा में प्राकृत-अपभ्रंश के प्रयोग" नामक लेख, आनन्द ऋषि अभिनन्दन प्रन्थ, पूना, १९७५, खण्ड ४, पृ० ८५ ।। १३. जैन, जगदीशचन्द्र ; “प्राकृत और हिन्दी" नामक लेख, प्रोसीडिंग ऑफ प्राकृत सेमिनार, पूना, १९७३। गल्ला ΛΔ Δ Δ Δ ΔΔ AAAAAAAA टोपी कुकुरी दूना खंट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522605
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorL C Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1988
Total Pages312
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy