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Vaishali Institute Research Bulletin No. 6
कुरर
पुल्ली
शब्दों का प्रयोग अपने ग्रन्थों में किया है उनमें से अधिकांश द्रविड़ भाषाओं के शब्द हैं । उनका आज भी कन्नड़, तमिल, तेलुगु, मराठी आदि भाषाओं में प्रयोग होता है। डा० रत्ना श्रेयान ने ऐसे कई तुलनात्मक सन्दर्भ अपने ग्रन्थ में दिये हैं। एक स्वतन्त्र अध्ययन का यह विषय होना चाहिये कि पुष्पदन्त के पूर्व इन दक्षिण भारतीय भाषाओं के शब्दों के प्रयोग की क्या स्थिति थी तथा पुष्पदन्त ने उनके प्रयोग और विकास में क्या योगदान दिया । ऐसा प्रतीत होता है कि पुष्पदन्त ने बहुत से शब्दों को लोक से उठाकर उन्हें साहित्य में प्रयोग कर अमर कर दिया है । यथाअक्क = माँ
कन्नड़ ओलग्ग सेवा करना
कन्नड़ भेड़
कन्नड़ डोंबी डोंब स्त्री
कन्नड़ णेसर = सूर्य
कन्नड़ पिल्लय छोटा प्राणी
कन्नड़ = सिंह
कन्नड़ अड्डा दर्पण
तेलुगु कडप्प
समूह करूल
बालों की लट चिच्ची आग
चिच्चु बोंडी = शरीर
पोंडी मेरा = सीमा
मेरइ ( मेड़ ) ७. पुष्पदन्त द्वारा प्रयुक्त शब्दावली का एक महत्त्वपूर्ण उपयोग यह किया जा सकता है कि उसमें वे शब्द खोजे जा सकते हैं जो माध्यकालीन आर्य भाषाओं में आज भी प्रयुक्त होते हैं । मराठी, गुजराती, राजस्थानी आदि भाषाओं में कुछ ऐसे शब्द आज हमें प्राप्त होते हैं, जिनके अर्थ प्रचलित नहीं हैं । ऐसे शब्दों की व्यत्पत्ति करना कठिन हो रहा है। विद्वान संस्कृत के शब्द कोशों या व्याकरण शास्त्र में उनकी व्युत्पत्ति खोजने की खींचतान करते हैं, जबकि वे शब्द प्राकृत अपभ्रंश से इन भाषाओं में आये हैं।'' अतः उनकी व्यत्पत्ति और अर्थ प्राकृत, अपभ्रश तथा देशी शब्दों के भण्डार में ही मिल सकेंगे। यह क्षेत्र स्वतन्त्र और गहन अध्ययन की अपेक्षा रखता है। पुष्पदन्त के जसहरचरित में प्रयुक्त कुछ शब्दों का क्षेत्रीय भाषाओं से साम्य द्रष्टव्य है :
मराठी कच्चोल = पात्र > कचोलें गंजोल्लिय = क्षुद्रव्य > गांजलेले खरूप्प = शस्त्रविशेष > खुर घुम्म = भ्रमण > धुमणे
फलप्पु
कुरूल
११. जैन, प्रेम सुमन; प्राकृत अपभ्रंश एवं अन्य भारतीय भाषाएं, बम्बई, १९७४ ।
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