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Vaishali Institute Research Bulletin No. 4
प्रसिद्ध था। जिनेश्वरसूरि की अन्य प्रधान कृतियाँ हैं-~-प्रमालक्ष्म लीलावती कथा, षट्स्थानक प्रकरण, एवं पंचलिंगीप्रकरण ।' उक्त कथाकोषप्रकरण, भारतीय कथा-साहित्य के विकास की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ हैं।
आचार्य सोमप्रभ कृत कुमारपाल प्रतिबोध के "राजपिण्डे भरतचक्रिकथा' नामक प्रकरण की लगभग २० गाथाओं में बाहुबली का प्रसंग आया है। इसका कथानक उस घटना से प्रारम्भ होता है, जब भरत दिग्विजय के बाद अयोध्या लौटते हैं तथा चक्ररत्न के नगर में न प्रवेश करने पर वे इसका कारण अमात्य से पूछते हैं । तब अमात्य उन्हें कहता है :
- बाहुबलि-कथानक उक्त गाथा से ही प्रारम्भ होता है और भरत उनसे दृष्टि, गिरा, बाहु, मुट्ठी एवं लट्ठी से युद्ध में पराजित होकर बाहुबलि के वध के हेतु अपना चक्र छोड़ देते हैं। किन्तु सगोत्री होने से चक्र उन्हें क्षतिग्रस्त किये विना ही वापस लौट आता है । बाहुबली भरत की अपेक्षा अधिक समर्थ होने पर भी चक्र का प्रत्युत्तर न देकर संसार की विचित्र गति से निराश होकर दीक्षित हो जाते हैं और यहीं पर बाहुबली-कथा समाप्त हो जाती है।
आचार्य सोमप्रभ का रचनाकाल ई० सन् ११९५ माना गया है। ये गुजरात के चालूक्य सम्राट कुमारपाल एवं आचार्य हेमचन्द्र के समकालीन थे।६ सोमप्रभ ने प्रस्तुत रचना का प्रणयन उस समय किया था, जब प्राग्वाटवंशी कवि राजा श्रीपाल के पुत्र कवि सिद्धपाल के यहाँ निवास कर रहे थे। कवि ने इस ग्रन्थ की रचना नेमिनाग के पुत्र शेठ अभयकुमार के हरिश्चन्द्र एवं श्रीदेवी नामक पुत्र एवं पुत्री के धर्मलाभार्थ की थी। इस ग्रन्थ के निर्माण के समय आचार्य हेमचन्द्र ने भी अपने तीन शिष्यों द्वारा इसे सुना था।' कवि सोमप्रभ की अन्य रचनाओं में सुमतिनाथ चरित, सूक्ति मुक्तावली (अपर नाम सिन्दूर प्रकरण) एवं शतार्थकाव्य उपलब्ध एवं प्रकाशित हैं। इनमें से कुमारपाल प्रतिबोध प्रस्तावशैली में लिखा गया है। इसमें कुल ५ प्रस्ताव (अध्याय) हैं तथा कुल लगभग ६७ कथानक लिखे गये हैं जो विविध नैतिक आदर्शों से सम्बन्धित हैं।
१. दे. वही, प्रस्तावना, पृ० २ । २. दे० कथाकोषप्रकरण---प्रस्तावना, पृ० ४३ । ३. Govt. Central Library, Baroda (1920 A.D.) से प्रकाशित ।
"किंतु कणिट्ठो भाया तुज्झ सुणंदाइ नंदणो अस्थि ।
बाहुबलित्ति पसिद्धो विवक्ख-बल-दलण-बाहु-बलो ॥" ४. दे० कुमारपालप्रतिबोध-तृतीय प्रस्ताव, पृ० २१६-१७ । ५-६. दे० वही, अंग्रेजी प्रस्तावना--पृ० ३ । ७-८, दे० वही, अंग्रेजी प्रस्तावना, पृ. ३ ।
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